हिंदी - अलंकार - साहित्य | Hindi Alankar-sahitya
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8.32 MB
कुल पष्ठ :
276
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)संस्कृत-अलंकार-सा हित्य ७ के प्रयोग द्वारा श्रोताओं के मन में वक्ता अपनी इच्छा के अनुकूल भावना जगा कर उनको अपना समर्थक बना सकता है । भरत के काव्य-विभूषण भी वे युक्तियां हैं जिनका श्रयोग वक्ता को दूसरे के समक्ष अधिक सफल सिद्ध कर सकेगा । इन युवितियों में से अनेक के नाम हमारे अलंक्ारों के नामों के समान ही हैं यहू तथ्य अलंकारों के जन्म पर कुछ अधिक प्रकाश डाल सकता है परन्तु अन्य नामों में से कुछ के लक्षण काव्य विभूषणों के उदा- हरण नाट्यशास्त्र में नहीं हूं हमारे यूनानी काव्य-शास्त्र से तुलना के इस अतुमास की पुष्टि चारंगे । उदाहरण के. लिए दाक्षिण्य गण मनोरथ तथा प्रियोक्ति के कक्षण देखिये । हृष्टवदन या अन्य समान चेष्टाओं द्वारा दूसरे का दाक्षिण्य है दोष का संकीतेन करते हुए गण का अथवा के संकीतेन में दोष का चतुर संकेत गहण है हृदय में छिपे हुए अर्थ को अन्य प्रकार से प्रकट करना मनोरथ कहलाता है प्रियोक्ति ४ उन हुष॑ प्रकाशक .वचनों को कहते हूं जो पूज्य व्यवित के आदर हेतु प्रसन्न मत से कहे जाय॑ । पोडश अध्याय के ४५ इलोकों ४३ से ८७ तक में अलंकार-विवेचन है लक्षण भी हूं तथा उदाहरण भी । काव्य के ४ अलंकार माने जाते हूे--उपमा दीपक .रूपक तथा थमक । काव्यबन्थों में सादुश्य द्वारा तुरुना उपभा कहलाती है इसका आधार हैँ गण या आकृति में समानता । उपमा ४ प्रकार से संभव है--एक की एक के साथ एक की अनेक के साथ अनेक की एक के साथ अनेक की अनेक के साथ ४५ से ४९ तक पुन उपसा के ५ प्रकार हैं--प्रथंसा निन्दा कल्पिता तथा फकिचित् सदुद्ची ५० से ५५ तक । विद्वानों को उपमा के इतने भेद ही संक्षेप में जानने चाहिएं जो कोष भेद हैं वे लक्षण-उदाहरण-पुरस्सर यहां नहीं बत्तलाये जा रहे उनको काव्य तथा लोक से स्वयं १ हुष्टै प्रसन्नवदनेर्यत परस्यानुवर्तनमू । क्रियते वान्थचेष्टाभि स्तद्दाक्षिण्यमिति स्मृतम् ।३०। ५ यतन्न संकीर्तयनू दोष॑ गुणमर्थन दर्दयेतु । गुणातिपातादु दोषाह्ा गहूणं लाम तदुभवेत् ॥३१॥। ३ हुदयार्थस्थ वाक्यस्य गूढाथस्य विभावकम् अस्थापदेद कथन मनोरथ इति स्मुतः ॥ ३६ ४ मनसा पूज्य पुजपितुं बच । तु सा प्रियोफ्तिरुदाहुता ॥४१॥ ४ उपसा दीपक चेव रूपक यमक तथा । _ काव्यस्पेते छालंकाराइचत्वार। परिकी तिता। 1४ ३। ६ . यत् फिचित काव्यबस्धेषु सादूशयेनोपसीयते । _.... उपसा नाम सा क्या ॥ ४४...
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