हिंदी के स्वीकृत प्रबंध | Hindi Ke Swikrit Prabandh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
165
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)এন
इंगलंड की परपरा : मि० गिलिस्पी ने सर विलियम हैमिल्टन को उद्धृत
कर अपनी यह धारणा पुष्ट की है कि इंगलैंड में ग्रोक्सफोडं या कैत्रिज ने
वि० वि० के संबंध में कोई विचारधारा नहीं दी.
१८७०ई० से पूर्व वि० वि० को यहाँ ज्ञानवुद्धि का केंद्र नहीं माना
जाता था. ऐसी स्थापनाओं का खंडन ही होता रहता था. किन्तु [9४ 01511176
(०073901 (१८७३) ने संभवतः पहली बार माना कि वि० वि० को
ज्ञानवृद्धि की ओर ध्यान देना ही चाहिये. इस देश में डॉक्टर उपाधि का
समारंभ १९००ई० के आगे-पीछे से हुआ. विदेशी विद्यार्थियों को आकर्षित
करने की दृष्टि से इस पद्धति का भ्रवलंबन विदोषं रूप से किया गया.
ग्रोक्सफोडं इस समय के बहुत दिनों के बाद तक भी जीवन-पद्धति
के विकास का उदेश्य सामने रख कर चला. बुद्धि, सामाजिकता, नीतिप्रवणता,
यहाँ तक कि ब्रिटिशपन की प्रवृत्ति जगाने में इन वि० विण ने अधिक
योगदान किया. १८५०४६० मं ई० बी० पुसी (?75०४ ) ने जो कुछ
बल देकर कहा था, वही यहाँ के जीवन का आदर बना रहा :
विश्वविद्यालय का उद्देश्य नैतिक और बौद्धिक अनुशासन प्राप्त करना
है. वि० वि० का विशेष कार्य विज्ञान की प्रगति करना या श्राविष्कार
करना नही, मानसिक रूप से दार्शनिक विचारधारा उत्पन्न करना नहीं,
विश्लेषण की नई पद्धतियों का पता लगाना नहीं, नई औषधि बनाना नहीं
है--उनका काम नैतिक, धामिक और बौद्धिक रूप से मानव का विकास
करना है. . . .अंग्रेज के बौद्धिक चरित का ढाँचा, पक्का, ठोस, सुदृढ़, विचार-
पूर्ण औौर अनुशासित न्याय है, विश्वविद्यालय को बौद्धिक शक्ति गृह (70०7
10786) क़ा रूप देना हमारे लिये बुद्धि-विपयय (एलण्लशगा) से
अधिक और कुछ नहीं है.
इस प्रकार उन्नीसवीं शती के मध्य तक ब्रिटिश जाति के मत से ज्ञान-
वृद्धि का कार्य उनके वि० वि० का नहीं था !
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2. वही--पृ० ४८. 3. वही--पु० ४३.
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