पुस्तकालय | Pustakalya

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डॉ भोलानाथ तिवारी - Dr. Bholanath Tiwari

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रामदयाल - Ramdayal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ १० | संख्या मँ थे | उत्साही पुस्तकाध्यक्ष ने उसे इस बात पर राजी कर लिया कि वह उन्हें उस लोक-पुश्तकालय की भेंट कर दे। इन चित्रों को आल- मारियों में यथाक्रम सजा दिया गया था। वहाँ के विद्यालयों को इतनी सुविधा प्रदान की गई थी कि वे समय-समय पर अपने भूगोल के पाठों की सजीव बनाने के लिए उन चित्रों के संग्रहों को मंगाएँ। मेने देखा कि मेरा मद्रास नगर प्राय; दो दर्जन मनोरंजक चित्रों द्वारा प्रदर्शित किया गया था | किन्तु यह मानना ही पड़ेगा कि चित्र पुस्तकों की तरह सरलता से . सुलभ नहीं होते। परन्तु जिन देशों में राज्य जे सामूहिक शिक्षा का भार अपने ऊपर ले लिया है, वहाँ पुस्तकालयों के गाढ सहयोग के द्वारा प्रदर्शनालय तथा कल्ला-मवन बहुत बड़ी संख्या में स्थापित किए जा रहे हैं। वत्त मान शताब्दी के आरम्म में जर्मनी में उनकी संख्या बहुत बड़ी थी। यदि हम पुन: इसका उदाहरण लें तो निम्नलिखित आँकड़े हमें मिलेंगे । १६१७ के पहले यूक्र न में केवल १४ प्रदर्शनालय थे, किन्तु वे बढ़कर १६३५ में १२० हो गये थे। ट्रांसकाकेशस में प्रदर्शनालयों की संख्या २५ से ४८ हो गई थी। उजबकिस्तान में २ से १५ तथा ट्स्मेनिस्तान में १ से ७ हो गई थी। यदि पूरे रूस का समष्टिरूप से विचार किया जाय तो प्रदर्शनालयों की संख्या १०० से बढ़कर ७६८ हो गईं थी, जिनमें आधे से अधिक खास-खास प्रदेशों के सम्बन्ध में थे और बाकी विभिन्‍न बिषयों से सम्बद्ध थे, जैसे--कला, ४६; उद्योग, ४६; इतिहास, ६८; स्वास्थ्य तथा सफाई ४४; निसर्ग-शास्त्र ४२; धर्म, २७; पदार्थ-विद्या, १८; शिक्षा, ८; इत्यादि इत्यादि । यह आवश्यक हे कि प्रत्येक नगर-पुस्तकालय तथा प्रत्येक चलता- फिरता पुस्तकालय प्रकाश-विस्तारक-यन्त्र (प्रोजेक्टर) से सुसज्जित हो। लेंटन॑-स्लाइड तथा सिनेमा-रीलें भी समय-समय पर प्रदर्शित की जानी चाहिये। प्रान्त के केन्द्रीय पुस्तकालय को उनका बहुत बड़ा संग्रह करना चाहिये और समय-समय पर उनमें वृद्धि करते रहना चाहिये तथा विभिन्‍न स्थानीय ओर जंगम पुरुतकालयों में भेजते रहना चाहिये |




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