गोस्वामी तुलसीदास | Goswami Tulsidas
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
20 MB
कुल पष्ठ :
304
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ६ )
कष्ट देना आरंभ किया कि वे वहाँसे हटकर अस्सी घाटपर चले आए जो
उन दिनों काशीकी बस्तीसे बाहर निराले जंगलमें पड़ता था ।
गोस्वामीजीकी प्रसिद्धि उनके समयमें ही हो चली थी। बड़े-बड़े
विद्वान्, सन्त, भक्त भौर महात्मा उनके पास विचार-विमशंके लिये
निरन्तर आते-जाते रहते थे । उस समयकरे प्रसिद्ध विद्धान् श्रीमधुसूदन
सरस्वतीजीने उनसे शाख्र-चर्चा करके कहा था---
आनन्दकानने ह्यस्मिश्नद्ममस्तुलसीतरुः ।
कवितामंजरी यस्य रामप्रमरभूषिता ॥
गोस्वामीजीके मित्रों और स्नेहियोंमें अब्दुरहीम ख़ानख़ाना, महाराज
मानसिंह, नाभाओ और मधुसूदन सरस्वती आदि महापुरुष प्रमुख थे ।
काशीमें इनके सबसे बड़े स्नेही भौर भक्त भदेनी मुहल्लेके भूमिहार
भूमिपति टोडरजी थे जिनकी श्स्युपर उन्होने कईं दोहे कटे है ।
गोस्वामीजीकी सस्युके सम्बन्धे पहर यह दोहा अधिक प्रसिद्ध था---
संबत सोरह से असी, शरसी गंगके तीर ।
खाचन सङ्गा सप्तमी, तुलसी तज्यौ सरीर ॥
पर बाबा बेनीमाधवदासकी पुस्तकमें दूसरी पक्कि इस प्रकार दहै या
कर दी गई है---
श्रावण कृष्णा तीज शनि, तुलसी तज्यों शरीर ॥
उनकी यही भिर्वाण-तिथि ठीक भी है, क्योंकि टोडरके वंशज
आजतक इसी तिथिको गोस्वामीजीके नामपर सीधा दिया करते हैं।
सूकरखेत
कुछ खोगेनि भे पुनि निज गुरुसन खनी क्था सौ सूकरखेत ।
के आधारपर गोस्वामीजीका जन्मस्थान शटा जञिरेके सोरो नामक
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