गोस्वामी तुलसीदास | Goswami Tulsidas

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Goswami Tulsidas by पं. सीताराम चतुर्वेदी - Pt. Sitaram Chaturvedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ६ ) कष्ट देना आरंभ किया कि वे वहाँसे हटकर अस्सी घाटपर चले आए जो उन दिनों काशीकी बस्तीसे बाहर निराले जंगलमें पड़ता था । गोस्वामीजीकी प्रसिद्धि उनके समयमें ही हो चली थी। बड़े-बड़े विद्वान्‌, सन्त, भक्त भौर महात्मा उनके पास विचार-विमशंके लिये निरन्तर आते-जाते रहते थे । उस समयकरे प्रसिद्ध विद्धान्‌ श्रीमधुसूदन सरस्वतीजीने उनसे शाख्र-चर्चा करके कहा था--- आनन्दकानने ह्यस्मिश्नद्ममस्तुलसीतरुः । कवितामंजरी यस्य रामप्रमरभूषिता ॥ गोस्वामीजीके मित्रों और स्नेहियोंमें अब्दुरहीम ख़ानख़ाना, महाराज मानसिंह, नाभाओ और मधुसूदन सरस्वती आदि महापुरुष प्रमुख थे । काशीमें इनके सबसे बड़े स्नेही भौर भक्त भदेनी मुहल्लेके भूमिहार भूमिपति टोडरजी थे जिनकी श्स्युपर उन्होने कईं दोहे कटे है । गोस्वामीजीकी सस्युके सम्बन्धे पहर यह दोहा अधिक प्रसिद्ध था--- संबत सोरह से असी, शरसी गंगके तीर । खाचन सङ्गा सप्तमी, तुलसी तज्यौ सरीर ॥ पर बाबा बेनीमाधवदासकी पुस्तकमें दूसरी पक्कि इस प्रकार दहै या कर दी गई है--- श्रावण कृष्णा तीज शनि, तुलसी तज्यों शरीर ॥ उनकी यही भिर्वाण-तिथि ठीक भी है, क्‍योंकि टोडरके वंशज आजतक इसी तिथिको गोस्वामीजीके नामपर सीधा दिया करते हैं। सूकरखेत कुछ खोगेनि भे पुनि निज गुरुसन खनी क्था सौ सूकरखेत । के आधारपर गोस्वामीजीका जन्मस्थान शटा जञिरेके सोरो नामक




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