आधुनिक हिंदी कविता में प्रेम श्रृंगार | Aadhunik Hindi Kavita Me Prem Shringar
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17 MB
कुल पष्ठ :
190
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)बासना : पुरुष २६
पागल आलिंगन विभोर हो
रिक्त आह + रोता फिर जगकर
आह, भुजो में शेष भार तन
दूर-दूर होतीं तम ऋ तिलय ।
--হাজল
कवि नारी की छवि को নিহাবু লাজানিলী कहकर उसे अंक में समेट लेना
चाहता है, किन्तु लगता है कि वह उसकी पूर्णता को समेठ नहीं सकेगा । वह उसके
उरोजों में से ज्योति की किरण छनते देखता है, जैसे मां के पर्यास्विनी स्वरूप की वह
एक भलक प्रात्त कर रहा है । फिर उसके रोम-रोम में नववजीवन की शक्ति हुंकारती
है। किन्तु अंबकार में प्रकाश प्राप्त करने की तृष्णा उसमें अ्रतृष्ति भरती है। उसका
मिलन कभी पूर्ण नहीं होता । नारी को वह अपने-आपमें कभी भी सीमित नहीं कर
पाता । वह प्रकाश की भांति दूर होती हुई उसमें लय हो जाती है ।
यह वर्णन नारी को प्रस्तुत से अप्रस्तुत में परिवर्तित करके उसकी वास्तविकता
को एक अ्ररूप में बदलता चला जाता है । इसमें হীন ক্যা विश्रम है। किन्तु बच्चन दूसरी
ग्रोर अपनी वासना को समाज के सामने उपस्थित करता है । वह नये स्वरों में कहता है :
पाप की ही गेल पर चलते हुए ये पाँव मेरे
हँस रहे हैं उन पगों पर जो बंधे हैं श्राज घर में !
हैं कुपथ पर पाँव मेरे झ्ाज दुनिया की नजर में ! !
><
में कहाँ हुँ और वह आदर्श मधुद्याला कहाँ है !
विस्मरण दे जागरण के साथ, मधुबाला कर्हाह |
हें कहाँ प्याला कि जो दे चिरतृषा चिरतृप्ति में भी !
जो डुबा तो ले सगर दे पार कर, हाला कहाँ हैँ !
देख भीगे होंठ मेरे और कुछ संदेह मत कर
रक्त मेरे ही हृदय का है लगा मेरे अधर में ।
><
वह विद्रोही है वहु बंधन को स्वीकार नहीं करता । दुनिया की नजर में
उसके पांव बुरे रास्ते पर हैं। किन्तु उसका आदर्श मथुशाला को ढूंढ़ना है। पर वह
उसे मिलती ही कहां है ! उसकी अपनी वेदना को, उसके हृदय के' रक्त को भी क्या
संसार मदिरा समझ सकता है ? |
राग के पीछे छिपा चीत्कार कह देगा किसी হিল,
हैं लिखे मधुगीत मेंने हो खड़े जीवन-समर में !
--अच्चन
उसे विश्वास है कि उसके समस्त राग के पीछे एक पीड़ित हृदय है । चीत्कार
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