आधुनिक हिंदी कविता में प्रेम श्रृंगार | Aadhunik Hindi Kavita Me Prem Shringar

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Aadhunik Hindi Kavita Me Prem Shringar by रांगेय राघव - Rangeya Raghav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बासना : पुरुष २६ पागल आलिंगन विभोर हो रिक्त आह + रोता फिर जगकर आह, भुजो में शेष भार तन दूर-दूर होतीं तम ऋ तिलय । --হাজল कवि नारी की छवि को নিহাবু লাজানিলী कहकर उसे अंक में समेट लेना चाहता है, किन्तु लगता है कि वह उसकी पूर्णता को समेठ नहीं सकेगा । वह उसके उरोजों में से ज्योति की किरण छनते देखता है, जैसे मां के पर्यास्विनी स्वरूप की वह एक भलक प्रात्त कर रहा है । फिर उसके रोम-रोम में नववजीवन की शक्ति हुंकारती है। किन्तु अंबकार में प्रकाश प्राप्त करने की तृष्णा उसमें अ्रतृष्ति भरती है। उसका मिलन कभी पूर्ण नहीं होता । नारी को वह अपने-आपमें कभी भी सीमित नहीं कर पाता । वह प्रकाश की भांति दूर होती हुई उसमें लय हो जाती है । यह वर्णन नारी को प्रस्तुत से अप्रस्तुत में परिवर्तित करके उसकी वास्तविकता को एक अ्ररूप में बदलता चला जाता है । इसमें হীন ক্যা विश्रम है। किन्तु बच्चन दूसरी ग्रोर अपनी वासना को समाज के सामने उपस्थित करता है । वह नये स्वरों में कहता है : पाप की ही गेल पर चलते हुए ये पाँव मेरे हँस रहे हैं उन पगों पर जो बंधे हैं श्राज घर में ! हैं कुपथ पर पाँव मेरे झ्ाज दुनिया की नजर में ! ! >< में कहाँ हुँ और वह आदर्श मधुद्याला कहाँ है ! विस्मरण दे जागरण के साथ, मधुबाला कर्हाह | हें कहाँ प्याला कि जो दे चिरतृषा चिरतृप्ति में भी ! जो डुबा तो ले सगर दे पार कर, हाला कहाँ हैँ ! देख भीगे होंठ मेरे और कुछ संदेह मत कर रक्त मेरे ही हृदय का है लगा मेरे अधर में । >< वह विद्रोही है वहु बंधन को स्वीकार नहीं करता । दुनिया की नजर में उसके पांव बुरे रास्ते पर हैं। किन्तु उसका आदर्श मथुशाला को ढूंढ़ना है। पर वह उसे मिलती ही कहां है ! उसकी अपनी वेदना को, उसके हृदय के' रक्त को भी क्‍या संसार मदिरा समझ सकता है ? | राग के पीछे छिपा चीत्कार कह देगा किसी হিল, हैं लिखे मधुगीत मेंने हो खड़े जीवन-समर में ! --अच्चन उसे विश्वास है कि उसके समस्त राग के पीछे एक पीड़ित हृदय है । चीत्कार




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