भारतीय प्रेमाख्यान काव्य | Bharatiy Premakhyan Kavya
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
23 MB
कुल पष्ठ :
488
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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प्रस्ताव से इृ्षिंत हुए. किन्तु राजकुमारी की माता को मन्त्रणा के बिना वचन
नहीं दिया,।
कुमारी की माँ ने, जो बड़ी विदुषी थी इस प्रस्ताव के उत्तर में कहा कि
ऋषि कुमार तपस्वी सो है किन्तु ऋषि नहीं, इसलिए किं क्षि मन्त्रद्रश
होता है, जब तक वह् चष न हो जायगा मै इस प्रस्ताव को न स्वीकार करगौ ।
,अस्तु राजकुमारी और ऋषि कुमार दोनों को इससे पीड़ा पहुँची ओर कुटी में
पहुँचने के उपरान्त श्यावाश्व ने घोर तपस्या प्रारम्म कर दी। उनको कठिन
तपस्या से प्रसन्न होकर भमारुतों' ने उन्हें दर्शन दिये तथा मन्त्रद्रष्टा का
वरदान दिया |
अपनी तपस्या सफत्न होने पर कुमार ने रात्रि! द्वारा अपने मन्त्रद्रश होने
का इचान्त राजा श्रोर राजमाता से कइत्नवा भेजा तया स्वयं पिता से आशा
लेकर राजधानी म गया । राजषि रथविति और उनकी पत्नी ने उसका सत्कार
किया तथा अपनी पुत्री मनोरमा का विवाह उसके साथ कर दिया ।
उपयुक्त तीन कहानियों मे देवों, मानवों और ऋषियों के प्रेमाख्यान मिते
ड! यम^वमी के भाई-बहन के प्रेम के श्रति।रक्त दूसरे प्रकार के प्रेम सम्बन्ध
का पता भी वैदिक साहित्य में मित्रता है ।
आगे चल्धकर उपनिषद् काल में कितनी हो छोटी बड़ी वर्णनात्मक कहानियाँ
लेसे याज्ञवल्क्य श्रौर गागों, सत्यकाम और जाबालि, अहल्या और इन्द्र की
मिलती हैं, फिर महाभारत तथा रामायण एवं बृहत् कथा साहित्य प्रेम कथाश्रों
के साहित्य के अक्षय भण्डार बन गए। महाभारत के 'संभव' पर्व में अ्रजुन
और सुभद्रा, इष्यन्त-शङ्खन्तला, सर श्रौर प्रमदवया तथा दिडिम्बा श्रौर भीम् के
प्रेमाज्यान मित्रते हैं ।
वेद और उपनिषद् की कहानियों में जहां एक ओर प्रेम है वहीं दूसरी ओर
एक आदश या सोख छिपी रहती है। जैसे उवंशी के प्रेम के कारण ही
पुखरवा जन कल्याण के लिए ॒त्रेषा श्रग्नि उत्पन्न कर सके, मनोरमाके प्रेम के
कारण ही श्यावाश्वः को ऋषिपद प्राप्त हो सका, ऐसे ह्वी महाभारत में वर्णित
कहानियाँ मो उद्देश्य-शूत्य नहीं हैं। हिडिम्बा के कारण ही घयेत्कच का बन्म
हुआ और उसके फल्नस्वरूप अजुन की रक्षा कर्ण से सम्भव हो सकी ।
पतञ्ञलि ने अधिकृत्य कृते अन्ये सूत्र की व्याख्या करते हुए, भैमस्थो,
सुमनोचरा श्रोर वासवदत्ता नाम के प्रेमाख्यानों का उल्लेख किया है । सुगर
फी वासवदत्ता प्राप्य है जो उदयन श्रौर वासवदत्ता के प्रेमाख्यान से भिन्न है,
श्रनुमानतः हम लोग कद सकते है किं पतञ्जलि कथित वाप्तबदत्ता भी रेसी द्यी
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