महा कवि हरिऔध | Maha Kavi Hariaudh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
25 MB
कुल पष्ठ :
375
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about गिरिजादत्त शुक्ल 'गिरीश' - Girijadatt Shukl 'Girish'
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हरिओध की लोकप्रियता ।
बहुत दिनों की बात है, तब मे आजमगढ़ के एक स्कूल में पढ़ता
था । परीक्षा के दिन थे, किन्तु तुकबन्दी का नशा सिर पर कुछ ऐसा
सवार था कि एक नवीन रचना लेकर में हरिऔथ जी की खोज मे
निकल पड़ा । उसके पहले मैने उनके दर्शन नहीं किये थे | जाड़े के
दिन थे; सबेरे की धूप अच्छी तरह छिटिक चली थी। वे खड़े-खड़े
किप्ती भाव-लहरी में निमम्न थे | उनकी कबिल्पूर्ण दृष्टि और भावमयी
मुखमुद्रा ने तत्काल ही निश्चय करा दिया कि महाकवि हरिओथ यही
हैं । किप्री से पूछताछ किये बिना ही मैंने अपनी तुकयन्दी उनके हाथों
मं रख दी । उन्होंने पूछा--'क्या यह कोई कविता है १”
मैंने उत्तर दिया--“जी, हाँ।”
हरिओध जी ने कहा--/सन्ध्या-समय आइए तो में इसका उचित
संशोधन करके इसकी त्रूटियाँ समझा दूँ।”
आज्ञानुसार संध्या-समय जब में फिर उपस्थित हुआ तब हरिओऔध
जी मेरी तुकबन्दी को बड़ ध्यान से देखने लगे । मैने बाबू मैथिलीशरण
गुप्त की निम्नलिखित पंक्तियों के नमूने पर अपनी रचना की थी:---
“प्रिय सखे तव पत्र मिल नहीं ।
मम मनोरथ-पुष्प खिला नहीं ॥
न॒ इसका तुमको कछ दोप है ।
बस हमीं पर देविक रोष है॥
जब स्वयं तुम भूर रहे हमे ।
विधि फ. अनुकूल रहे हमें ॥
>< >< >< >
इस कविता मं संस्कृत के द्रतविलम्बित वशेवृत्त का प्रयोग किया
गया है । परन्तु दुर्भिल छन्द के साथ मैंने इसकी ऐसी खिचड़ी पकायी
User Reviews
No Reviews | Add Yours...