मानस - पियूष | Manas - Piyush

Manas - Piyush by महात्मा श्री अंजनीनन्दन शरणजी -Mahatma Sri Anjaninandan Sharanji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सकेनाघर भा दा भा. स्क. भक्तिरसचोधिनी- ठीका में० मं० झलो० मं० सो. मनु महा रा. मदाभा महाभा,. चा. प. (डाक्टर) माता- प्रसाद शुभ मा. भ दी मा. न थि. मानस-ढीपिका मा. प. मा. पचिका मानस प्रसंग मा. प्रसंग मा, धर मानसमणि । । ( १७ ) सता... नर विवकतिकातववविनववकववववविवि विवरण श्रीमागवतद्सजीकी पोधी श्रीमदूमागवत स्कन्घ श्रीप्रियादासजीकृत गोस्वामी घ्रीनाभाजीरुत भक्तमालकी टीका क्वित्तोम मंगलाचरण मंगलावरणका च्लोक मंगलाचरणका सोरठा मजुस्सति महारामायणके भध्याय धर ध्लोक महाभारत मरदाभारन जान्तिपर्च उनकी रची हुई 'तुठसीदास' नामफट्रपुस्तक मानस भिप्राय दीपक संत उन्मनी श्रीगुरुसद्दायलाल- ज्ीरी चालकाण्डकी ठीका कायीजीक्ें वाबा रघुनाधटास ( रामसनेही ) कृत टीका प्लानसपत्रिका' ( महामहोपा- ध्याय श्रीसुघाफर हि चेरीजी तथा साहित्योपाध्याय श्रीसूर्यप्रसाद- मिश्रद्ारा सम्पादित मासिक पत्रिका जा काणीजीसे लगभग सं० १५७०: तक चिकली मानसराजहंस श्रीविजयानंद घ्रिपाटीजी ( काणी ) की रचित मानसप्रकरणकी टीका । चाचा श्रीजानकीदासजी मद्दायाज श्रीअयोध्याजीकी प्रसिद्ध चाल- काण्डके आदिकें 28 दोहोकी टीका 'मानसपरित्वारिका' । चावा माधोटासजी इन्हीके शिप्य थे । श्रीमयोध्याजीके समायणियाकी परम्परा इन्दींसे चली । पक मासिकपत्रिका;जों 'रामचन' जिला सतनास निकटती है । मा* पी ुव्ारद्ख० है दा सफेताक्षर मा. म. मा. मा मानस-रहस्य मानसांक मा धां० मा. समा से माकं, पु मिध्रजी सुक्तिको. सुण्डक १. २ १२ यज्ु, 3९. १९. १ (पं) रा. णु. दि. (पं)रा चं. घुकल विवरण पं०्रीशिवलालपाठकजीविरसित 'माचस-मयंक' की वावू इन्द्रदेव- नारायणसिंहजी छत टीका थर मूल 1 चावा श्रीजावकीशरण ( स्नेह- छता ) जी कृत मानस-मार्तण्ड सामक घाछकाण्डके प्रथम ४२. ठोहांका तिठक जो दस-वारह वर्ष हुए छपा था 1 यह गढंकार्यीकी एक छोटी पुस्ति- का थी । गीताप्रेस; गोरसपुरसे प्रका दित मात्तसका घधम संस्करण (टीका- सदित ? जो विदेपाढके रूपमें प्रकाशित छुआ था । श्रीसन्मानस इंकावली मानसपीग्रूपका संपादन माकण्डेयपुराण पं० सय्रसादमिश्रजी सा हिंत्यो- पाध्याय ! मुक्तिकोपसिंपद्‌ सुण्डकोपतिपद्‌ प्रथम मुण्डक; द्वितीय खंड; ड्लान्दय श्रुति यजुर्वेद संहिता; भध्यायर २१ क्ण्डिका १९ मनन १ मिरजापुरनिवासी साकेतवासी प्रसिद्ध रामायणी पँ० श्रीयाम- गुलामद्टि वेदीजी । इनके छाया संदोधित वारदद ग्रव्योके शुटकाके संस्करणोम॑ंसे खं० १९४५ में काच्यीके छपे हुए गुरका तथा मानसी चन्द्नपाठकजीकी हस्त- लिखित प्रतिछिपिमे दिया हुआ पाठ जो पं० श्रीरामचल्लभादरण- ज्ञीके यहाँ है । पं० श्रीसमचन्द्र छुक्ठ; भरोफेसर काशी हिन्दू. विश्वविद्यालय




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