मानस पीयूष | Manas Piyusha

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Manas Piyusha by महात्मा श्री अंजनीनन्दन शरणजी -Mahatma Sri Anjaninandan Sharanji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( श ) सुरसाका सुख बढ़ाना (गौड़जी) ३२-३४ २ (१०-११) सूर्य श्रौर चन्द्रग्हण ३६-३७ (२-३) स््री-झविद्या ममता मायाका प्रंधान कारण... ी ३७३ ४७ (३-४) स्रीका प्रभाव पुरुषपर एककान्तमें झधिक ३०० ३६ (४-६ ) स्त्री-हृत्या महापातक १०७ १० (७) सेनाके प्रस्थान की तिथि रद रद ३४ (६-८) स्वगत वार्ता २४२ ४र (३-४) स्वतंत्रता या स्वच्छन्द्ता अ०्घ ६१ (१-२) स्वमाव (श्रीरामजीका) जाननेवाले... २८२ ३४ (२-३) हनुमंत शब्दकी सिद्धि शर १ (१) दनुमानजीको झष्ट सिद्धियाँ प्राप्त २२६ दो० २६ के बढ़नेपर विश्वसाहित्य दृष्टिसे विचार २२१ दो० २५. को राम-बाणको उपमा २० १ (८) मेनाक प्रसंगसे उपदेश (परमार्थारूढ़ स्टदके कहनेसे भी ध्येयसे न हे) २४ दो० १ का गाजन २३७ रै८ (५) र८ (१) की करनी श्रौर राच्षसोंकी करनीका मिलान... २२१ दो० २५. चि्नांकन र८४ ३४ (४) रावशु-प्रसंगमें ६ तइत्तियाँ २०४-२०५ २४ (१ २) सुरसा प्रसंगसे उपदेश ३२ र (१०-११) चरणपादुकाके अवतार २७२ ३३ (१) के प्रति रावणका विचार कि यह वानर नहीं है १७२ १६ (१-२) नें श्री सीताजी भरतजी श्रादि को डूबते बचाया १३५४. १४ (१-२) के छुदयमें ब्रीड़ा. आदि संचारी भावोंका उदय २७२ ३३ (१) 3 की श्रीरामरूपमें श्रनन्यता ५० ४ (९) हनुमानजी विना बिचारे काम नहीं करते. £३ ६ (१) के छृदयमें लंका जलानेकी इच्छा कब अंकुरित हुई २१४ ं रध (३) कपटको पहचानते श्र कपटीको मारते हैं ३७ ३ (४) )खेलाड़ी श5० 3 फुशल कवि शद७ विंभीषण प्रसंगके वचनोंकी समता धो बप ८ (बी विभीषणुजी (का मिलान) ८९ ८ (३) विभीषण संवादका प्रयोजन श्र प्रमाण ७३-४ ६ (४) के द्वादश नाम ८र ७ (दो को परचित्त विज्ञान सिद्धि ६० प (5) सबसे विद्र रूपसे मिले पर श्रीसीताजीसे कपि रूपसे मिले ७४9 दे (५-६) हनुमानजी कंपीश्वर कैसे € मं० श्छो० हे हनुमान बंधन श्र शुक-बंधन प्रसंगोंका मिलान १ ५२ [४ ६) हनुमानजी के उत्तरोंमें ग्रथित सिद्धान्त २०६ २४ (१-२) हनुमान क ११ मं० न्छो० ३ ह्नू द५६ दो० ४४ हरिं ३ मं० शो० १ हाथ पकड़कर परम निकट बैठाना यह सौभाग्य केवल हनुमान्‌जीका है २७६- २७७ दे (४) हास्यकलाकी निपुणता ३०८ ३७ (४४) में झभिमानजनित हँसी श्र व्यंग २०६ र४ (१-२) हितोपदेशकके लक्षण २०६ २४ (१-२) हृदयका लंकासे रूपक ३७८ दो० ४७ हु शुभशकुन १५-१६ १ (२) कार्यसिद्धिका सूचक... १६ १ (३) श्रा० १२ (१)




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