हिन्दी गद्य मीमांसा | Hindi Gadh Mimansa

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Hindi Gadh Mimansa by रमाकान्त त्रिपाठी - Ramakant Tripathi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ५ कविता लिखना तक असम्भव था ¦ हा; यह दूसरी बात दै कि राज-द्रबारों में राज-प्रश्रय में सभी श्रकार को साहित्यिक च्च हो सकती थी । जायसी, गंग, रहीम, सेनापति तथा अन्य कवियों ने हिन्दी में लोकिक ( 5९८पाँ॥/ ) साहित्य की रचना इसी कारण कर पाई कि यातो वे राजदरबारों के प्रभाव के निकट रद्दे या सम- कालीन धार्मिक आनन्‍न्दोलनों के प्रबेण से वाहर रद्दे, जिससे उनके दिमाग्यों में वह व्यावहारिकता अथवा वह चुलबुलाहट उपस्थित ५. ¢ টি रही होगी जिससे उत्कृष्ट तथा रोचक गय-साहित्य को सुजन की प्रेरणा मिलती है । अब, यदि कहा जाय कि मुसलमान-राज्य में और विशेष कर मुग्रल-काल में जब एक से एक बढ़े-चड़े हास्य॑प्रिय दरबारी रहा करते थे, जो रात-दिन अपने हँसी के लतीफ़ों से क़हक़ढे मचाये रहते थे, तब ऐसी अनुकूल परिस्थिति में गद्य लिखने की प्रथा का अचार क्यों न हो पाया? बात ठीक है, और इसका यथेष्ट समाधान करना भी कठिन है। परन्तु इसके उत्तर में यह कहा जा सकता द्वे कि यद्॒पि मुग़लों के राज्यकाल में, ओर खासकर अकबर और उसके निकटतम उत्तराधिका रियों के समय में, अपेत्ञाकत सुख ओर शान्ति थी, तथापि इसी प्रसंग में इतिहास साक्षी हैं कि उस समय भी नित्य नये रंणकोतुक रचे जाते थे । स्वयं अकबर 'को अन्त तक कभी राजपूतों से, कभी सीमान्त-प्रदेशवालों से ओर कभी दक्तिण वाले राज्यों से लड़ते ही बीता । सारांश यह दे कि भारत में सत्र किसी न किसी रूप में शुणु-चचो व्याप्त थी । ऐसी स्थिति में भला गदय-लेखकों के लिए कहां




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