बुद्धधर्म के उपदेश | Buddha Dharm Ke Upadesh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
149
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about भिक्षु धर्मरक्षित - Bhikshu dharmrakshit
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)५ बुद्धघम के उपदेश
८ तो क्या मानते हो महाराज । युद्ध आरम्भ हो जाय, सग्रास द्वि
जाय, तब सुशिभित, अस्यस्त, निडर भर जान लेकर न भागने बाला
क्षत्रिय कुमार आये, तो उस पुरुष को रखोगे ! तुम्हारा काम उससे
होगा ! वैसे पुरुष तुम्हे चाहिये!”
“মল! তত पुरुष से मेरा काम होगा, वैसे ही पुरुष मुझे चाहिये |”
ध्यदि ब्राह्मण कुमार आये, वैश्य कुमार आये, शद्ध कुमार आये 7?
“भन्ते | उस पुरुष से मेरा काम होगा, मुझे वैस पुरुष चाहिये ।”
८टसी प्रकार महाराज ! जिस कुल से निकल कर बेपर हो प्रजजित
हुआ दाता है ओर वह होता है पाँच बातों से रहित तथा पच बातो
से युक्त, तो उसे दान देने म महाफ्ल होता है । फोन सी पाँच बाते
र हत हाती ह ! (१) कामच्छन्द (कामुकता); व्यपाद् द्रोह); स्यान-
मध ( शरीर भोर मन का बाल्स्व ) ओद्धप्य क्स्य ( चचलता नीर
स्काच ) ओर बिचिकिप्सा ( सन्दह +--य याते राहत दोती ह । *
क्ष्न बाता स युक्त हांता है ! अशैक्ष्य ( जिम बुछु सीसना शष
नही ह = अर्हत् )-- शाल सकन्य, अशेभ्य समाधि स्कन्धः अशैक्ष्य विक्त
स्कन्ध अ।र सय पिर कि ज्ञान द्श्वन-इन पोच बातों स युक्त होत। है. ।
इस प्रकार पाच बातों स रहित और पाच बाता से युक्त का देने मं
महाफ्ल होता ६ । भगवान् ने यह ष्टा | यह कहकर सुगत शास्ता
ने यद् मी कदा-
४जिस मनुष्य मसम्रामभूम म जाने के लिये बछ, वीय होता है,
उसीको राजा युद्ध क॑ लिये पोसता हे; न कि अ शूर ( डरपोंक ) को
जाति के कारण| उसी प्रकार जिसम क्षमा कोमछता ओर धर्म प्रतिष्ठत
हैं, उस आर्य बृत्ति वाले, मेघावी को नीच जाति का होने पर भी पूज ।
रमणीय आश्रम बना; उसमे बहुअ्॒त को बसाये। प्याऊ-वूप और
दुम बनवाये । अन्न, पान्, वल, शयनासन भोर लाद्नीय वस्तु को
प्रसन्नचित्त से ऋजुभूत को दे |”!
१ सयुत्त निकाय १, ३, ३; ४।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...