बुद्धधर्म के उपदेश | Buddha Dharm Ke Upadesh

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Buddha Dharm Ke Upadesh by भिक्षु धर्मरक्षित - Bhikshu dharmrakshit

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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५ बुद्धघम के उपदेश ८ तो क्या मानते हो महाराज । युद्ध आरम्भ हो जाय, सग्रास द्वि जाय, तब सुशिभित, अस्यस्त, निडर भर जान लेकर न भागने बाला क्षत्रिय कुमार आये, तो उस पुरुष को रखोगे ! तुम्हारा काम उससे होगा ! वैसे पुरुष तुम्हे चाहिये!” “মল! তত पुरुष से मेरा काम होगा, वैसे ही पुरुष मुझे चाहिये |” ध्यदि ब्राह्मण कुमार आये, वैश्य कुमार आये, शद्ध कुमार आये 7? “भन्ते | उस पुरुष से मेरा काम होगा, मुझे वैस पुरुष चाहिये ।” ८टसी प्रकार महाराज ! जिस कुल से निकल कर बेपर हो प्रजजित हुआ दाता है ओर वह होता है पाँच बातों से रहित तथा पच बातो से युक्त, तो उसे दान देने म महाफ्ल होता है । फोन सी पाँच बाते र हत हाती ह ! (१) कामच्छन्द (कामुकता); व्यपाद्‌ द्रोह); स्यान- मध ( शरीर भोर मन का बाल्स्व ) ओद्धप्य क्स्य ( चचलता नीर स्काच ) ओर बिचिकिप्सा ( सन्दह +--य याते राहत दोती ह । * क्ष्न बाता स युक्त हांता है ! अशैक्ष्य ( जिम बुछु सीसना शष नही ह = अर्हत्‌ )-- शाल सकन्य, अशेभ्य समाधि स्कन्धः अशैक्ष्य विक्त स्कन्ध अ।र सय पिर कि ज्ञान द्श्वन-इन पोच बातों स युक्त होत। है. । इस प्रकार पाच बातों स रहित और पाच बाता से युक्त का देने मं महाफ्ल होता ६ । भगवान्‌ ने यह ष्टा | यह कहकर सुगत शास्ता ने यद्‌ मी कदा- ४जिस मनुष्य मसम्रामभूम म जाने के लिये बछ, वीय होता है, उसीको राजा युद्ध क॑ लिये पोसता हे; न कि अ शूर ( डरपोंक ) को जाति के कारण| उसी प्रकार जिसम क्षमा कोमछता ओर धर्म प्रतिष्ठत हैं, उस आर्य बृत्ति वाले, मेघावी को नीच जाति का होने पर भी पूज । रमणीय आश्रम बना; उसमे बहुअ्॒त को बसाये। प्याऊ-वूप और दुम बनवाये । अन्न, पान्‌, वल, शयनासन भोर लाद्नीय वस्तु को प्रसन्नचित्त से ऋजुभूत को दे |”! १ सयुत्त निकाय १, ३, ३; ४।




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