हीरक जयंती ग्रंथ | Heerak Jayanti Granth

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Heerak Jayanti Granth by श्री कृष्णलाल - Shri Krishnlal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ५ 9 जीवन पयत समा कौ सक्रिय सेवा करते रहे । इस त्रिमूर्ति ने समा का पालन-पोषण अपनी संतान के समान किया तथा अनेक कठिनाइयो से इसे उबारा | इसीलिये ये तीनों सभा के संस्थापक ही नहीं; पाछठक ओर पोषक भी हैं | इसी कारण सभा के संस्थापक होने का श्रेय इस त्रिमूर्ति को ही प्राप्त है। २--राजभाषा तथा राजलिपि (१ ) संयुक्त प्रदेश के न्यायालयों में नागरी नागरी-प्रचार के उद्देश्य से ही इस सभा की स्थापना की गई थी ओर प्रथम वर्ष से ही इसके प्रत्येक पक्ष पर सभा ने ध्यान देना आरंभ कर दिया था। सन्‌ १८३७ मे अंग्रेजी सरकार ने फारसी को सवंसाधारण के लिये दुरूह मानकर देशी भाषा जारी करने की आज्ञा दी जिसके फल्सरूप बंगाल में बेंगला, उड़ीसा में ओड़िया, गुजरात में गुजराती ओर महाराष्ट्र में मराठी में काम होने छगा | संयुक्तप्रांत, बिहार और मध्य-प्रदेश में “हिंदुस्तानी! जारी की गईं। परंतु उस समय अँग्रेज हाकिमों को अदालती अमझों ने अपनी सुविधा और स्वार्थ-सिद्धि के छिये यह समझा दिया कि उद्दूं ही हिंदुस्तानी है ओर इस प्रकार इन प्रांतों में उ्दूं अदाछती माषा हो गई | प्रयत्ष करने पर बिहार और मध्य प्रदेश की सरकारों ने सन्‌ १८८१ में इस श्रम को समझा और अपने यहाँ उदू के स्थान पर हिंदी प्रचलित की, पर संयुक्त प्रांत की सरकार ने इस জীহ विशेष ध्यान नहीं दिया । नागरी-प्रचार के अन्य कार्यो के साथ सभा का ध्यान इस ओर भी गया ओर उसने इसके लिये उद्योग आरंभ कर दिया। सन्‌ १८८२ मेँ प्रांतीय बोडं आव्‌ रेवेन्यू का ध्यान इस बात की ओर आइड्ठ किया गया था कि सन्‌ १८७५ और १८८१ के क्रमशः १९ वें और १२ वें विधानों के अनुसार 'समन” आदि हिंदी और उद दोनों में भरे जाने चाहिएँ | दो बध तक इसका कोई उत्तर नहीं मिला । अतः प्रांतीय सरकार के पास निवेदनपत्र भेजा गया | सन्‌ १८६४ के नवंबर मास (सं० १९५१ ) में प्रांतीय गवर्नर काशी आने वाले ये | समा ने उन्हें एक अमिनंदन-पत्र देना निश्चित किया, जिसमें हिंदी भाषा के साथ न्याय करने ओर सभा की उद्देश्य-पूर्ति में सहायता करने की प्रार्थना की गई थी। किंतु किन्हीं कारणों से उनका आगमन नहीं हो सका, अतएवं अभिनंद्न-पत्र उनके पास डाक से भेज दिया गया | गवनर की ओर से जो उत्तर मिछा था उसका आशय था कि--- “गवर्नर महादेय ने अमिनंदनपत्र रुचिपू्वंक पढ़ा । इसमें जिस मुख्य प्रइन की चर्चा की गई है, अर्थात्‌ अदाल्ती भाषा उदू की जगह हिंदी कर दी जाय, उसपर गवनर महोदय अपनी कोई संमति अभी प्रकट नहीं कर सकते | फिर भी वें यह अवश्य स्वीकार करते हैं कि सभा की प्राथना ध्यानपूवक विचार करने योग्य है ओर वे मविष्य में समुचित अवसर पर सपर अवश्य विचार करेगे | इन्हीं दिनों रोमन छिपि को दफ्तर की लिपि बनाने का भी कुछ प्रयत्न आरंभ हुआ था। इसपर सभा ने अपने ६ भाद्रपद, सं १९५२८ २५ अगस्त, १८९५ ) के निश्वयानुमार नागरीलिपरि भर रोमन अक्षरों के विषय में एक पुस्तिका तैयार करके अँग्रेजी में प्रकाशितकी और सरकारी पदाधिकारियों तथा जनता में




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