गुप्त - सिद्ध - प्रयोगांक भाग 2 | Guptsiddh Progank Bhag - 2

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Guptsiddh Progank Bhag - 2 by रामचंद्र शर्मा - Ram Chandra Sharmaश्री कृष्णलाल - Shri Krishnlal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१५८55 जउप्त्न रिििट उनरोगाय्य दस पर वे विटु पिषी- न? भ गुश--यह दवा -कछ्टमाध्य बात विकारों को भी दूर ् कर देती दै फिंतु पक्षाघात लकवा और कपोत कबूतर की विष वोट. १० तोला अर्दित तथा कम्पचात की तो प्रतीम आपधि प्र हि न. डर ही है इसका ४० दिन का प्रयोग है । वात-विकार ला सता कसादी के होते ही इसका प्रयोग कर दिया जावे तो ४ दिन में फल प्रतीत होने लगता है। हमते बिधि--पहले कबूतर की सूखी बीट को कूटकपड़- इसका नेक जगह प्रयोग किया है। हमारे . छान करले और फिर सब दवाओं को मिला .. अनुभव से ८७ प्रतिशत को लाभ हुआ है । केर खरल में डालकर .मजबूत हाथों से तीन ः दिन तक घुटाइ करें 1 इस दवा में घुटाई का - प्रप्ठ ६४१ का शेषांश अंधघिक दोना उत्तम गुणाधानकर है। उत्तम . पिष्टी होने पर शीशी में रखले । सूचना-इसके प्रयोग के समय रोगी के कपड़े पहनने तथा घिछाने के श्रौर उसके परिचारक के कपड़े पानी में उबाल कर धूप में सुखाते रहें और नये _उबाले हुये कपड़े पद्नते रहे । अझन्य किसी के वस्त्रों का रोगी और रोगी के वख्रीं का अन्य पथ्य--गेहूँ को रोटी मूली दलिया मूग की दाल लोग प्रयोग न करें । इस प्रकार चिकित्सा. करने मर दूध श्ादि दें । से अवश्य लाभ होगा | श मात्रा--एक रत्ती से लेकर चार रत्ती तक की मात्रा हैं। दिनमें ३ वार अद्रक के रस -और शेददद के साथ देना चाहिये । | ी कर बाय व चन्नसठ चर चन्सथथ चल घट चन्स्वट दा चाप इन्नसठ चस्छ दो नवीन प्रस्तकें अन्दर इदव चूदक दब इच्लणल इन च्यण श्नुभूत चिकित्सा संग्रह | -. . भारतीय जोवाणु विज्ञान इसमें श्रायुर्वेद यूनानी एवं एलौपैंथी के | - गौरव पूणें अतीत के. हिन्दू शास्त्रों में मव चुने हुए प्रयोगों का संग्रह्द दै। २३२ प्रो में | तक छिपे दर दमा की -ष्झायु - -ससार का ।जज्ञासा उस श्पाश्चय- ना श्े जनक पूर्ति इस पुस्तक ने की है। पुम्तक पठ- मंगाइये। ः नीय है। मू० १1 1 पता--धन्वन्तरि कार्यालय विजयगढ़ अलीगढ़ है




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