खादी - मीमांसा | Khadi Mimansa

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Khadi Mimansa  by बालूभाई मेहता - Baloobhai Mehata

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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खादी-मीमांसा १ ९ खादी और भारतीय संस्कृति जब द्रव्य कौ तृष्णा की अपेक्षा चेतन्यमय मानवसृष्टि का कल्याण साधन करना, इस प्रकार की ही समाज-रचना होना जिसमें कि सम्पत्ति का समान बटवारा हो, श्रामोद-प्रमोद की प्रवृत्ति कम करके बन्धु-भावना का विकास करने की ओर श्रधिक ध्यान देना, श्रौद्योगिक प्रतिधोगिता पर प्रतिबन्ध लगाकर पारस्परिक व्यवहार सहयोग द्वारा करने की प्रवृत्ति रखना, द्रव्य साध्य नही साधन हं, इस भावना सेश्राचरण करना, श्रौर स्वार्थ के लिए अविराम दोड़-धूप करने में सुख न मानना, यही भारत का स्वभाव है ।' - राधाकमल मुकर्जी मनुष्य और राष्ट्र इनमें अनेक बार एक प्रकार का साम्य होता है । जिस तरह प्रत्येक मनुष्य के स्वभाव मे एकाध विरिष्ट गुण की भलक प्रमु- खता के साथ दिखाई पडती है, उसी तरह प्रत्येक राष्ट्र की अपनी कुछ- न-कुछ विशिष्टता होती है। ससार के मौजूदा प्रमुख राष्ट्रो की ओर इस दृष्टि से देखने पर हमे इग्लेण्ड की नाविकता श्रथवा जहाजरानी, जमेनी की संनिकता, फ़रासत की ललितकलाभिरुचि, श्रमेरिका की उद्यमरदीलता श्रौर हिन्दुस्तान की श्राध्यात्मिकता इत्यादि सद्गुण प्रमुखता से विकसित हु९ दिखाई देते ह । हिन्दुस्तान अध्यात्म-प्रधान राष्ट्र हैं। इसका श्रथे यह है कि वह रहस्य- ग्राही और दूरदर्शी राष्ट्र हे। वह क्षणभगुर और शाइवत, देह और शआ्रात्मा, छिलका अ्रथवा चोकर ओर सत्त्व का भेद पहचाननेवाला राष्ट्र हे। ग्रीक, रोमन, बेबिलोनियन, मेसिडोनियन इत्यादि राष्ट्र उदय हुए और अ्रस्त हो १ “€ 60042०8 ता [पतान ९-८0707105 पृष्ठ ४५९-६१ ओर ४६५-६७




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