गुबारे - खातिर | Gubare - Khatir
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
24 MB
कुल पष्ठ :
294
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)गुबारे-खातिर
भ्रायेगा । लेकिन इस खास उस्लूबे-तहरीर में वो इस कसरत के साथ श्रशआर
से काम लेते हैं कि हर दूसरी तीसरी सतर के बाद एक शेर ज़रूर भ्रा जाता है
भ्रौर मतलब के हुस्न भ्रो दिल-श्रावेज़ी| का एक नया पैकर नुमायां कर
देता है ।
क़िलञ्-अहमदनगर के श्रक्सर मकातीब इसी तजें-तहरीर में लिखे गये.
है । उन्होने नस मे शायरीकी है श्रौर जिस मतलब को अ्रदा किया है इस तरह
किया है कि जिह॒ते-फ़िक्रों नक्शा आराई कर रही है भौर वुसअते तख़य्युल' रंग
श्रो रोगन भर रही है। इकज्ष्तिहादे-फ़िक्र' श्लौर तजदीदे-उस्लूब मौलाना की
आराम और हमागीर खुसूसियत है। क़लम और जबान के हर गोशे में वो
तजजे-प्राम से अपनी रविश* श्रलग रखेंगे और अल्फाज श्रो तराकीव से
लेकर मतालिब और श्रदाये-मतालिब के तज् तक हर बात में तक़लीदे-श्राम
से गुरेज़ां' और अपने मुज्तहिदाना अंदाज़ में बेमेल और वेलचक नज़र
आयेंगे। उन्होंने जिस वक्त से क़लम हाथ में सँमाला है हमेशा पेशरौ श्रौर
साहबे-उस्लूब रहे हैं। कभी यह गवारा नहीं किया कि किसी दूसरे पेशरौ के
नक््शे-क़दम ' पर चलें । चुनांचे इन मकातीब में भी उनका झुज्तहिदाना अंदाज़
हर जगह नुमायां' है। बग्रेर किसी एहतिमाम” और काविश के क़लम
बरदाश्ता लिखते गये हैं। लेकिन -वयान है जो बेसाख्तगी'' में भी उभरी
चली आती है श्रौर काविज्ञे-फ़िक्र' है जो ्रासदमें भी श्रावुदं से ज्यादा
बनती और सँवरती रहती है । ेु
ज़राफ़त है तो वो अपनी बेदाग़ लताफ़त रखती है, वाक़यानिगारी
है तो उसकी नक्शआ्नमाराई का जवाब नहीं । फ़िक्न का पैमाना हर जगह बुलंद
श्रौर नज़र का मैयार हर जगह अजंमंद'' है ।
इन मकातीब पर नज़र डालते हुये सबसे ज़्यादा अहम चीज़ जो सामने
সানী है, वो मौलाना का दिमाग़ी पस मंजर (बेकग्राउंड ) है। इसी पस मंजर
१. मनमोहकता २. रूप ३. सोच विचार का अनोखापन
४. चित्रकारी ५. विचारों की विस्तीर्णाता ६. कल्पना की चेष्ठा ७. शैली
की नूतनता ८. सर्वागीण 6€, कोना या ढंग १०. ढंग ११. तरकीब का
बहुबचन १२. श्राम लोगों के अ्रनुकरण से १३. दूर १५४. शअ्रग्रदूत, अगुशा
१५. पदचिन्ह १६. प्रगट १७. तैयारी १८. प्रयत्न १६. स्वतःस्फू्ल
जो लिखा जाता है उसे बेसारुता लेख कहते हैं। २०. कल्पना की नई-नई
झाविष्कृतियाँ* २१. जो स्वतःस्फूर्त रचना होती है उसे श्रामद और बना संवार
कर लिखी हुई रचना को श्रावुदं कहते हँ । श्रामदन याने श्राना श्रौर श्रावुर्दन
याने कना । २२. विनोद २३. सुंदरता २४. घटना व्ण॑न २५. महान !
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