कालिदास | Kalidas
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
30 MB
कुल पष्ठ :
320
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about वासुदेव विष्णु मिराशी - Vasudev Vishnu Mirashi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ক্বান্ত-লিতীঘ ३
का रचना-काल सोलहवीं शताब्दी है। यह कालिदासके सेकड़ों वर्षों बाद लिखा
गया था । इसलिए. इसका ऐतिहासिक महत्त्व या मूल्य बहुत ही कम है।
आश्चमं तो यह है कि भिन्न-कालीन कवियोंको एक ही समयमें ओर एक ही
कतारमें बल्लालने लाकर खड़ा कर दिया है | भोजके दरबारमें कालिदास, भवभूति,
भारवि, दण्डी, बाण, इन सबको आप समस्या-पूर्ति करते हुए पाएँगे। इन
कवियोंका आश्रय-दाता प्रसिद्ध धाराघीश भोज भी उक्त कवियोंके कई सौ
वर्ष बाद ११ वीं सदीमें हुआ था, यह तो उसके ताम्र-पत्रोंसे भी सिद्ध हो चुका
है। अब पाठक स्वयं इसका निर्णय करें कि कवियोंके समय-निणेय करनमेमें उक्त
४ प्रबन्ध ” कितना निकम्मा हे ।
परम्परागत विश्वसनीय सामग्रीके अभावमें कालिदासके जन्म-स्थान, स्थिति-काल
तथा चरित्रके सम्बन्धमें अनेकोंने अनेक तरहकी मनमानी कब्पनाएँ की हैं | इन
सब प्रश्नोंमि उनका स्थिति-काल एक अत्यन्त विवादग्रस्त विषय हे, साथ ही वह
अत्यन्त महत्वका और अन्य सब प्रश्नोंका विवेचन करनेमें आधारभूत भी । इससे
इस परि.छेदमें इसी विषयका विचार किया जायगा
कालिदासके कालकी दो स्पष्ट सीमायें विद्वानोंने मानी हैं । कालिदासने अपने
£ प्रालविकाभिमित्र ” नाटकका कथानक शृुंगवंशीय राजा अग्रिमित्रके चरित्रसे लिया
है । यह अभिमित्र, मोयबंशका उच्छेद कर मगध साम्राज्यको छीननेवाले सेनापति
पुष्यमित्रका पुत्र था। इसका समय ईसासे लगभग १५० वषे पूवे विद्वानोंने
निधारित किया है। तब कालिदासका समय इससे पहले नहीं हो सकता ।
कालिदासके नामका स्पष्ट उल्लेख पहले पहल कन्नोजके सम्राट हषेके (ई० स०
६०६-६४७ ) आश्रित प्रसिद्ध संस्कृत महाकवि बाणमह कृत हषचरितिकी
प्रस्तावनामें और दक्षिण-मारतके “ ऐहोले ” नामक ग्राममें प्राप्त हुए शिलालेखपर
(३० स० ६३४ ) खुदी हुई प्रशस्तिमें आया है। ये दोनों उल्लेख ईसाकी
सातवीं शताब्दीके हैं। इससे इसके बाद कालिदासका काल नहीं हो सकता ।
कालिदासके स्थिति-कालके विषयमें निम्न-लिखित म॒त प्रस्तुत किये जाते हैंः--
(१) ईसासे पूर्व दूसरी शताब्दी (डॉ० कुन्हन राजा ), (२) ईसाकी
पहली द्ाताब्दी ( रा० चिंतामणि वैद्य ), (३ ) ईसाकी तीसरी शताब्दी ( श्री.
द. वै. केतकर ), ८४) ईसाकी चौथी शताब्दीका उत्तराध (डा० सर
रामकृष्ण भाण्डारकर आदि भारतीय तथा अनेक यूरोपियन पंडित ),
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