भारतेंदु साहित्य | Bhaaratedndu Saahitya

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Bhaaratedndu Saahitya by रामगोपाल सिंह चौहान - Ramgopal Singh Chauhan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जीवनी -- ६ -- प्रातः कालीन सूयं की किरणे गंगा के निमल जल से मुख-प्रच्छालन कर जागरण का सन्देश लिए अपने देनन्दिन कर्तव्य के लिए तत्पर हो रही थीं । काशी नगरी की अ्रट्टालिकाओं में, साधारण घरों में, बीथियों ओर राजमार्गो में सवंत्र जागरण का कोलाहल भर उठा था । गंगा के घाटों पर मन्त्रोच्चा- रण ओर हरिनाम की ध्वनि गूज रही थी | प्रसिद्ध विश्वनाथ के मन्दिर में तथा नगर के अन्य मन्दिरों में कल्याणकारी शिवशम्भू की स्वति गूज रही थी ओर घन्टों की गजर मन्दिरों के गुम्बजों को पार कर अनन्त में व्याप्त हो भक्तों के हृदय की भावनाओं को श्रनादि, अनन्त में व्याप्त कर रही थीं। सब ओर जागरण के चिन्ह दोख रहे थे । उस जागरण की बेला में हिन्दी साहित्य के पुनर्जागरण के अग्रदुत भारतेन्दु का जन्म हुआ । जागरण की किरणें श्रौर प्रखर हो उटीं | नि টি 7 + भारतेन्दु নানু का जन्म शु० ५ ऋषि पंचमी खं १६०७-६ सितम्बर १८४० ई०--को सोमवार के दिन, प्रातः बेला में काशी के शिवाला मोहल्ले में अपने नाना के घर हुआ था । भारतेन्दु के पिता का লাম “कविकुंल कमल? श्री गोपालचंन््र गिरधरदासः था श्रोर माता का नाम श्रीमती पावेतीदेवी । “गिरघरदासजी? स्वयं अपने समय फे प्रतिभाशाली कवि थे, श्रोर हिन्दी, उदू संस्कृत के प्रकाश्ड विद्वान ये, उन्होंने छोटे बड़े मिलाकर चालीस ग्रन्थों की रचना की थी । भारतेन्दु को काम्यकला, नास्यकला, सद्दयता, दानशीलता, भक्ति श्रादि के संस्कार उन्हीं से प्रा्तहएये | इस प्रकार जन्मसे ही भारतेन्दुको श्रपने घर में ऐसा श्रनु- कूल क्षाहित्यिक वातावरण मिला, कि उनकी प्रतिभा को अंकुरित और विक-




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