जयद्रथ - वध | Jayadrath - Vadh
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
106
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about मैथिलीशरण गुप्त - Maithili Sharan Gupt
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अथम सं १३
यों करण को हारा समझ कर चित्त में अति क्रद्ध हो,
दुर्योधनात्मज वीर खक्ष्मण आगया किर युद्ध को ।
सम्मुख उसे अवछोक क्र अभिमन्यु यों कहने छगा,
मानों भयक्कुर सिन्धु-नद हृद दोड़ कर बहने लगा,
“तुम्र हो हमारे बन्धु इससे हम जताते हैं तुम्हें,
मत जानियो तुम यह कि हम निबंल बताते हैं तुम्हें,
अब इस समय तुम निज जनों को एक वार निहार छो,
यम-पाम में ही अन्यथा होगा मिलाप विचार छो ।”
उस वीर को, सुन कर वचन ये, कग गई बस आग-सी,
हो कद्ध उसने शक्ति छोडी एक निष्टुर नाग-सी ।
अभिमन्यु ने उसको विफल कर “पाण्डवों की जय” कही,
फिर शर चढ़ाया एक जिसमें ज्योति-सी थी जग रही ।
उस अद्धंचन्द्राकार शर ने छूट कर कोदण्ड से,
लेदन किया रिपु-कण्ठ तण्क्षण फलक?-घार प्रचण्ड से ।
होता हुआ इस भाँति भासित शीश उसका गिर पड़ा,
होता प्रकाशित टूट कर नक्षत्र ज्यों नभ से बढ़ा ॥
तत्काल हाहाकार-युत रिपु-पक्ष में दुख छा गया,
फिर दुष्ट दुःशासन समर में शीघ्र रूम्मुख आगया |
है गॉँसी |
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