श्री विमलनाथ पुराण भाषा टीका | Shri Vimalnath Puran bhasha Tika
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17 MB
कुल पष्ठ :
218
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सुमे आपसे जदा होना पड़ा ॥ ६१ ॥ हाय क्या मेंने सुनिधांकी निन्दा की थी वा कंद सूल आदिका भक्षण
किया था अथवा घमवाक्थेंका उलंघन किया जिससे तीव्र पापका-बंब होकर झुझे! यह दुःख भोगना पड़ा ॥६२॥
राजा उपश्रेणिकके कुटुम्बी जन तो इधर इस प्रकार दुःख मान रहे थे उधर जिस गदेमे घोड़ेने उन्हें ले जाकर
डाला था वह गढ़ा नरकसे भी अधिक दुर्गन्धमय था इसलिये उन्हें बड़ी व्यथा होने लगी । उन्हें उस समय
सिवाय परमांत्माके शरणके अन्य किसीका भो शरण न खूक पड़ा इसलिये वे उन्हींके नामकां जप वहां बैठकर
करने खगे ॥ ६३ ॥ जिस बनके गढ़ेमें मंहाराज उपश्रेणिक पड़े थे उसी बनमें एक वैवच्छ ( त्थ ) वास नामकी
मीलेांकी पल्ली थो । उस पल्छीका स्वामी यम ( यमदण्ड ) नामका भीलछेांका राजा था जो कि क्षत्रिय जातिका
था और सदा चहींपर रहता था। राजा यमदण्डकी स्लीका नाम विदय न्मालो था । उससे उत्पन्न एक परम
सुन्दरी कन्या थी जिसका शुम नाम तिका ८ तिख्कवतो ) था क्रोड़ाका प्रेमी बह भिकछराज धमदुण्ड उस জাতী
स शोचनीय अयस्थासें पड़े राजा उपश्रे णिकको उप्तने देखा । प्रसिद्ध महाराज को इस प्रकार बुरी हालतमें देख
वह विचारने लगा कि देखो कभेको विचित्रता, कहां तो यह राजग्रहपुरका खामी उपश्रेणिक ओर कां इसकी
यह दुःखमय रखोचनीय अवस्था ! बस वह् शोध ही राजाके विलद्कल पास पहुंच गया एवं मनोहर रारीरका
घारक वह मीठे प्यारे हाब्दोंमें कुशल पूछने लगा! महाराज उपश्नेणिक्मे मी जो बात जिस तरह बीतीथी
सारी कह खुनाई। रंचमात्र मो न छिपाई क्पोंकि कर्मो की गति बड़ी विचित्र है--किस समय नीचेसे ऊंचापन
आर ऊ चेसे नीचापन होगा किसीको जान नहीं पडता । अन्ते महाराज उपश्चं णिकने कहा--
प्रिय महानु नाव ! तुन कौन हदो ओर तुम्हारा निवासस्थान करां है १ उत्तरम भिस्लराज यमदण्डने कहा
राजन् ! जिस समय मेरा राज्य मेरे हाथसे चछा गया और में राज्यरहित हो गया तबसे मै इसी बनमे आ
गया हूँ और यहीं पर रहने लगा हूँं। सथंकर गढ़ में गिरनेसे आपका चारीर पीड़ायुक्त हो गया है कृपाकर इस
दीड़ाकी निबृत्तिके लिये आप मेरे घरपर चलें | मिल्लराजकी प्राथना राजा उपश्रे णिकने , मंजूर कर छी। वे उस
-के साथ चले आये । घरमें आकर जिस समय उन्होंने थमदण्डका आचार भीलों सरीखा देखा उन्हें वह सहन
বউ इसलिये शीघ्र ही उन्होंने यमदण्डसे कहा--भाई घमदण्ड ! तुम्दारा घर खाचार---आवककों
से रहित है में तुम्हारे घरमें भोजन नहीं कर सक़ता। उत्तरमें यमदण्डने कहा--क्ृपानाथ ! यदि यही
हैं तो आप मेरी बात खुनें--मेरे एक तिलकवती नामकी पुत्री है। साउुद्रिक शासत्रमें कहे गये शुभ लक्ष-
पुराण
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