मोक्षमार्ग प्रकाशन की किरणें | Moksha Marg Prakashan Ki Kirne
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
226
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रथम अध्याय ११
से का था; किन्तु यदि तुझे धर्मा को समझने की रुचि है
तो धर्मा का स्वरूप इस राग से भिन्नदहै। राग से धमः
नहीं है, किन्तु राग रदित घात्मा के चैतन्य खभाव को
समझने से धर्म' है |
नरकादि गतियों से बचने की अपेक्षा से शुभराग
ढ्वारा कल्याण कह दिया; किन्तु चाह्तत्रिक्त कल्याण ( घमं )
तो उससे भिन्न है |-इत्यादि प्रक्वारों से जिस प्रकार जीव का
हित हो उसी रीति से जिन शासन का उपदेश है।
जे सतशाल्रां का स्वाध्याय करके राग का पोषण
करते है वे खच्छन्दी हैं।
शास्त्र के कथनों को पढ़कर जो जीव राशग-देष-मोह को
बढ़ाने का आशय निहालते हैं वे जीव सतशाशत्र के आशय को
नहीं समझे हैं ओर वे खच्छन्दो हैं। उन जीवों के लिये तो
वे सतूशासत्र द्वित का निमित्त भी नहीं हेँ। शास्त्र में राग-
द्वेष मोह की बृद्धि करने का आशय ही नटी, दधन्तु वे
जीव अपनी त्रिपरीत श्रद्धा कै कारण वैखा समञ्च है, उमे
शाह्य के कथन का दोष नहीं हे, जिन्तु जीव की समझ का
दोष है| जो जीव यथार्था जात्मस्व॒भाव वो समझ्नक्वर राग द्वेए-
मोह को कम्र करते हैं. उन्हें सत्तशाज निमित्त रूप कषे
जाते हैं।
शुभराग का क्या प्रयोजन है!
चारित्र दशा में पचमद्दात्रत छा शुभराग होता है-ऐसा
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