हिन्दी जैन साहित्य परिशीलन भाग 1 | Hindi Jain Sahitya Parishilan Bhag I
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
254
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दार्शनिक आधार २३
चर्णन अल्प परिमाणमे हुआ है। नाविकाके यौवन, रूप, गुण, शील,
दार्गनिक प्रेम, कुछ, वैभव और आभूपणोंका नित्पण न्यूनतम
রি माननामे उपकन्ध दै । यहं वात नहीं कि हिन्दी-जेन-
साहित्यमें अज्ञातवीवनाका भोलापन, शातयौवनाका
मानसिक विस्लेषण, नवोदाकी लजाकी ललाई, प्रोढाका आनन्द-समोहन,
विद्ग्धाका चातुर्ग्य, मुदिताक्ी उमग, प्रोपितपतिकाकी मिलनोत्ण्ठा,
प्रव्स्ययतिकाकी बेचेनी, आगमिष्ययतिकाकी अधीरता, खण्डिताका
कोप एवं कल्हान्तरिताका प्रेमाधिक्यजन्य कलहका चित्रण नहीं
है, पर प्रधानतवा इसमे मानवकी उन भावना और अनुभूतियोको
प्ृष्ठाघार रूपसे खीकार किया गया है, जिनपर मानवता अव-
लम्बित है |
हिन्दी जैन-साहित्यके मूलाधारभूत जैन-दर्शनके मुख्य दो भाग हैं---
एक तत््वचिन्तनका और दूसरा जीवन-शोधनका | जगत्, जीव ओर
ইস্ট स्वरूप-चिन्तनसे ही तत्त्वज्ञानकी पूर्णता नदी होती दै, किन्तु इसमे
जीवन-झोधनकी मीमांसाका भी अन्तर्भाव करना पडता है । जेन-मान्यतामं
जीव, अजीव, आखव, बन्ध्, सवर्, निर्जरा ओर मो ये सात तत्व माने
गये द | इनके स्वरूपका मनन, चिन्तनकर आत्मकस्याणक्रारी तत्वोमे
प्रवृत्ति करना जैन-तत््वज्ञानका एक पहलू है । उक्त सातो तत्त्वोमे जीव
ओर अजीव ये दो मुख्य तत्व हैं | सबच्चिदानन्द मय आत्मा या जीव नान,
दर्शन, सुख, वीर्य आदि गुणोंका अक्षय भाण्डार है। यह अखण्ड, अमूर्तिक
पदार्थ है, जों न शरीरसे वाहर व्यात है और न शरीरके किसी विशेष
বামন केन्द्रित है, किन्तु मनुष्यके समग्र शरीरमे व्यात्त है।
आत्माएँ अनेक है, सबका स्वतन्त्र अस्तित्व है । कर्म-अजीव (पुद्गल)
के सम्बन्धक कारण संचारी आत्मा अगुदध है, राग-दरेषते विङत दै
जब कर्म-वन्धन हट जाता है, तव कोई भी आत्मा शुद्ध हो जाती दै । यह
शुद्ध आत्मा ही ईश्वर या मुक्त कहल्यती है । प्रत्येक आत्मामे ईशर वननेकी
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