सम्मति - तर्कप्रकरण भाग - 1 | Sammati - Tarkaprakaran Bhag - 1

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Sammati - Tarkaprakaran Bhag - 1  by आचार्य श्री सिद्धसेन दिवाकर - Aacharya Shri Siddhasen Divakar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१५ पृष्ठांक विषयः २६ क्षर्थक्षियाज्ञान के प्रामाष्य का निश्चय कंते होगा? २७ अयं के विता भौ प्रथेक्रियाज्ञान फा संभव २७ प्रथक्षियाज्ञान फलप्राप्तिहप होने का कथन प्रसार दहै २५ फलक्ञान में प्रामाण्य्ठका सावकाश २६ भिन्नलातीय संवादोज्ञान के ऊपर अनेक विकल्प ३० अधेक्षियाज्ञान के ऊपर समानाधत्तमान कालता के विकल्प ३१ स्वतः प्रामाण्यताधक अनुमान के हतु में व्याप्ति को सिद्धि ३२ परतः प्रामाण्यताधक अनुमान में व्याप्ति भौर हतु क्षो भिदि ३२ प्रमाणनाव और अप्रमाणज्ञान का तुल्यरुप नहीं है। ३३ पंवादज्ञान केवल अप्रामाण्यशंका का निरा- करण करता है ३४ ज्ञान में प्रामाध्यशंका करते रहने में प्रनिष्ट ३५ प्रेरणाजनित वृद्धि का स्वत:प्रामाण्य ३५ शासन स्वतः सिद्ध होते पे जिनस्थापित नहीं , हो सकता-पुर्वपक्ष समाप्त ३६ उत्पत्तो परत: प्रामाण्यस्थापने उत्तरपक्षः (१) ३६ प्रामाण्य परतः उत्पन्न होता है-उत्तरपक्ष प्रारम्भ ३७ गुणवान्‌ नेत्रादि के साय प्रामाण्य का अन्दय- अ्यतिरेक ३७ गुणपकाप करने पर दोषापलाप कौ बापत्ति ३४ लोकव्यवहार मे सम्या को गुणप्रयुक्त মালা नाता है ३९ प्रामाण्यकप पक्ष से अनपेक्षत्व हेतु की असिद्धि ४० अप्रामाण्यात्मक शक्ति में भी स्वतोभाव आपत्ति 1 ४० शक्तियाँ स्वत्तः उत्पन्न नहीं हो सकती । १ पृष्ठाः विषयः ४१ शक्ति का प्राधय के साथ वम-ध्मिभाव गेम है ४१ क्क्ति माध्य ते भिन्नाऽभिन्न या अनुभय नही है ४२ उत्तरकालीन संवादीज्ञान से अनुत्पत्ति में सिद्धसाधन ४३ अप्रामाण्य को भ्रोत्सगिक कहने की आर्पात्ति ४४ दोषाभाव में पयु दास प्रतिषेष कहते में परतः प्रामाण्यापत्ति ४५ आत्मलाभ के बाद स्वकायं में स्वतः प्रवृत्ति धरनूपयन्न ४५ ज्ञान की स्वात्तरयेण प्रवृत्ति किष कायं मे ? ४६ शपौरषेयविधिवाक्यनम्य बुद्धि प्रमाण कंते सानी जाय? ४७ बेदवेचत प्रपौखषेय करयो ग्रोर कंसे ? ४८ प्रपौरषेय बचन न प्रमाण न अप्रसाण ४८ बेदवचन्‌ मेँ गुणदोष उभय का तुल्य जभाव ४६ प्रपौरुषेय वात्य फा प्रामाण्य आर्थाभिध्यंजक पुरष पर भवलंबित ५० प्रामाण्यं स्वक्ायेऽपि स स्वतः-उत्तरपक्षः(२) १५० स्वक्षाय मे प्रामाण्य के स्वतोमाव क्षा निरा- करण उत्तरपक्ष ५१ भ्रथतथा्व का परिच्छेदक ज्ञानस्वरुपविशेष के उपर चार विकल्प ५१ ज्ञान का स्वरूपविश्वेष अपूर्वा्थविज्ञानत्व नहीं ५१ ज्ञान का स्वरुपविश्वेष बाधविरह भी नहीं है ५२ जायमाने बाधविरह ो स्य कते भाता জাম ? ५३ संवाद से उत्तरकालीन बाधाविरह ज्ञान की सत्यता कंसे ? १३ उत्तरकाल्मावि घाघाधिरहुरूप विशेष की अपेक्षा मे स्वतोभाद फा भस्त ४४ पयु दासनत से वाधाभावात्मक संवाद अपेक्षा की सिद्धि




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