राजस्थान के जैन संत व्यक्तित्व एवं कृतित्व | Rajasthan Ke Jain Sant Vyaktitv Avam Krititv
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
322
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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। बाद मे , तो वे जैनो के, आध्यात्मिक राजा कहलाने लगे किन्तु यहो. उनके
तिन का प्रारस्मिक कदम था।
जैन सन्तो ने भारतीय साहित्य को भ्रमुल्य कृतिया भेंट की है। उन्होने
देव ही लोक भाषा मे साहित्य निर्माण किया। प्राकृत, अपभ्रश एव हिन्दी
पाओ से रचनायें इनका प्रत्यक्ष प्रमाण है। हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने का
इन्होने এ নী शताब्दी से पूर्व ही लेना प्रारम्भ कर दिया था। सुनि
[নিই का दोहा पाहुड हिन्दी साहित्य की एक अमुल्य कृति है जिसकी तुलना मे
पा साहित्य की बहुत कम कृतियाँ आ सकेंगी । महाकवि तुलसीदास जी को तो
७ वी शताब्दी मे भी हिन्दी भापा मे रामचरित मानस लिखने मे झिझक हो रही
# किन्तु इन जेन सन्तो ने उनके ८०० वषं पहिले ही साहस के साथ प्राचीन
हेन्दी मे रचनायें लिखना प्रारम्म करदियाथा।
जन सन्तो ने साहित्य के विभिन्नश्र गो को पल्लवित क्रिया । वे केवल चरित
गव्यो के निर्माण मे ही नही उलकरे किन्तु पुराण, कान्य, वेलि, रास, पचास्का,
हे पच्चीसी, वावनी, विवाहलो, आख्यान आदि काव्य के पचासों रुपो को
होने भ्रपना समर्थन दिया और उनमे भ्रपती रचनायें निरभित करके उन्हे पल्लवित
गीने का सुअवस्तर दिया । यही कारण है कि काव्य के विभिन्न अगो परे इन सच्तो
रा निर्मित रचनाये अच्छी सख्या मे मिलती है ।
आध्यात्मिक एवं उपदेशी रचनाये लिखना इन सन््तो को सदा ही प्रिय रहा
६ 1 अपने अनुभव के श्राधार पर जगत की दशा का जो सुन्दर चित्रण इन्होने
पनी कृतियो मे किया है वह् प्रत्येक मानव को सत्पथ पर ले जाने वाला है।
नह्येते मानव से जगत से भागने के लिये नही कहा किन्तु उसमे रहते हुए ही अपने
गीवन को सुमुन्नत बनाने का उपदेश दिया | शानन््त एव श्राध्यात्मिक रस के जति-
रेक्त इन्होने वीर, श्र गार, एवं अन्य रसो मे भी खुब साहित्य सजन किया ।
महाकवि वीर द्वारा रचित “जम्बूस्वामीचरितः (१०७६) एव भ० रतनकीत्ति
प वीरविरासफाग इसी कोटि की रचनाये हैं। रसो के अतिरिक्त दछच्यो ঈ
तनी विविधताएे इन सन्तो कौ रचनाभो मे मिलती है उतनी श्रन्यत्र नही । इन
न्तो की हिन्दी, राजस्थानी, एव गुजरात्ती भापा की रचनायें विविध छन्दोसे
प्लावित है ।
लेखक का विश्वास है कि भारतीय साहित्य की जितनी अधिक सेवा एवं
क्षा इत जन सन्तोने की है उतनी श्रधिक सेवा किसी सम्प्रदाय अथवा घंमं के
साधु वर्ग द्वारा नही हो सकी है। राजस्थान $ इन सन्तो ने स्वय ने त
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