कामायनी अनुशीलन | Kamayani Anushilan

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Book Image : कामायनी अनुशीलन  - Kamayani  Anushilan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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९ हु . कामायनी--अनुशीलन में प्रवाह की भद्गिमा सूचित करने के लिए होती है। नूतन भाव के साथ नूतन छुन्द का सामञ्जस्य करने से रमणीयता बद्‌ जाती है। पश्चिम में भारत की भाँति सद्गजीत-तत्त्व का सक्ष्म विधान नहीं है फिर भी वहाँ के कवि छन्दःपरिवरत्ति के बिना भी परिस्थिति-परिवतन की सचना देते रहे है | यदि के नियम का पालन न करे ततो इससे मूल सिद्धान्त का विरोध उपस्थित नहीं हो सकता, भले ही नियम या उपनियम का पालन नहों सके । मानस के रण-प्रसज्गो में कवि ने वीरभावोद्वोधक छन्दो का प्रयोग बरावर किया हैं किन्तु पद्मावत में वे ही प्रसह्ढ উই चौपाइयों मे रक्खे गय है। ऐसा करने से उसका युद्ध-बर्णन श्रवश्य उतना नही खिल सका पर उससे वीरभाव कां उद्रक होता ही नही, पेसातो नही कहाजा रुकता । ठीक इसी प्रकार यदि बात-बात मे छन्द वव्लते ज्ये तो इस ्रतिरेकसेवैसादी च्या उससे भी अधिक बाधा उपस्थित हो सकती है। केशव की रामचन्द्रिका मे छन्हों का हेर-फेर इतना अधिक हुआ है कि प्रवाह जमता नहीं, टूट-टूट जाता है। इसी से कहा जाता है कि शाख, साग-विलोकन की हृष्टि दे सकता है, माग पर पद्‌-चिन्यास करला नहीं सिखला सकता। अनुकूल-पदछ्धति चुनने का काय, कता 1 है, श्मत्र का नही । प्रवन्ध-काव्य में नाना प्रसार की घटनाओ का समावेश अनेक अकार की न्तव त्तियो का अद्भुन करने के लिए हे।ता है और उसका समन्वित लक्ष्य दाता हैँ 'मानव जीवन की यथासाध्य पृणं अभिव्यक्ति। यदि घटनाओं के आधिक्य के चिना कतां वैसा करने मे सफल हो जाय तो स्थूल नियमो का अतिक्रमण दूषण न होकर भूपण-ही होगा । कामायनी मे यरी 1] है 1




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