रामानुज क विशिष्टाद्वैत में भक्ति का सम्प्रत्यय | The Concept Of Bhakti In The Vishistandvaita Of Ramanuja

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
The Concept Of Bhakti In The Vishistandvaita Of Ramanuja by रामलाल सिंह - Ramlal Singh

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about रामलाल सिंह - Ramlal Singh

Add Infomation AboutRamlal Singh

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
सनातनीवर्ग मान्यता नहीं दे रहा था। आलवार सतो के गीत यद्यपि भक्ति रसामृत प्रवण थे, तथापि समाज का उच्चवर्ग उनसे अपना तादात्म्य स्थापित नहीं कर पा रहा था | ज्ञान-सिद्धात के नीरस दर्शन से प्राकृत जन आतकित था ओर कुछ-कुछ किकर्त्तव्यविमूढ भी। ऐसे विश्रुखलित समाज मे एकरसता का वातावरण उत्पन्न करने का कार्य युग-पुरूष रामानुज के कन्धो पर आ पडा। रामानुज ने इस गुरूतर दायित्व का निर्वाह भी बडी ही सूञ्जबूञ् एव कुशलता के साथ किया | समाज के बुद्धिजीवी एव अभिजात वर्ग के लिये उन्होने भक्तियोगः जसे मध्यममार्ग का प्रतिपादन किया, जिससे न केवल बौद्धिक जनो की ज्ञान पिपासा की तृप्ति हो सके, अपितु लोगो की धार्मिक भावनाओ, मान्यताओ की भी तुष्टि हो सके । दूसरे शब्दौ मे, जिसे बुद्धि समञ्च सके व हृदय अपना सके । साथ ही, उन्होने भक्ति के ही अगभूत शरणागति का प्रतिपादन करके, समाज मे महिलाओ व शूद्रो के वर्ग के अहम्‌ की तुष्टि की, जिसे न तो वेदो के पावन ज्ञान का अधिकार था. न ही सासारिक जगत्‌ के वात्याचक्र मे फंसे होने के कारण ज्ञान, भक्ति या कर्म किसी भी साधन दारा ईश्वर-प्राप्ि का अवकाश था रामानुज के परवर्ती-काल मे 14 वीं 15 वी शती मे 'रामावत-सम्प्रदाय' के अतर्गत कबीर, तुलसी आदि ने भक्ति तत्व की महिमा का पर्याप्त सवर्धन किया एवं वस्तुत भक्ति भारतीय जनमानस मे पञ्चम-पुरूषार्थ' के रूप मे स्थापित हो गयी | आचार्य तुलसी ने तो 'रामचरितमानस' जैसा 'भक्ति-सरोवर' बनाकर, युगो से पद्कपूरित जनो को उसमे अवगाहन करा, निर्मल कर दिया । उधर कबीर ने सिद्ध कर दिया कि নিত का मार्ग भी मुंह का कौर नर्ही, वरन्‌ धैर्य एवं समर्पण की पराकाष्ठा है - “कबीर कठिनाई खरी, सुमिरर्तो हरि नाम | सूली ऊपरि नट विद्या. गिरे त नाही ठाम ।। इसी तरह गोस्वामी तुलसीदास ने भी पर्याप्त लगन एव धैर्य के साथ साधने पर ही वास्तविक भक्ति के सिद्ध होने के बात कदी हे - {81




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now