श्रीतुकाराम- चरित | Shri Tukaram Charit

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Shri Tukaram Charit by श्रीलाक्ष्मण रामचंद्र पांगारकर ShriLakshman Ramchandra Pangarkar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १३) उपयोग ययास्थान किया है। निझोयारायका हस्तलिसिव आंवीबद्धा प्रय मिखा, उससे मी काम छिया ६1 देहू और छाह्रगाॉवफ घणन तथा शिछाटेख मी पाठक देसग्पें | इस प्रथफा 'का९निणय-अध्याय पोष ही भरा ह। मरथर्मे जहाँ-शहाँ यारकरी सम्प्रदायफा स्यरूप दरसाया ई । जहाँ यो फ्रागज-पत्र, पुरानी पद्यां भौर चेषएटन मिले उ सखमे्ी साज ठीफ़ तर्ये की है। स्रांजसे कोई स्थान अमी मदि खाष्टी रहं गमां हा मथमा किसी खोज इसफे ग्राद प्रफ2 द्व तो उसके लिये में जिम्मे दार नहीं हैं । आठ मर्पसे इस प्न्थफा पुकार मची है और इसके यारेमें सनेक टेख और व्याए्यान प्रसिद्ध होते रहे हैं, फिर मी यदि फिसीने कोई यात मुझसे छिपा रखी द्वा ता यह उन्हींका दोप है । इस चरिश्रप्न थक्रा तीसरा आधार है प्वक़ारामजीफ प्रयाणकाएसे एर्‌ अम्रतक उनका जा-जो घरिश्रकथन और गुणफीर्सन हुआ; जो घो झासख्यायिकाएँ হ্যা हुईं, णो-जो घरिध्रप्रन्थ और प्रयघ छिसे गवे--उन सयका पर्याक्षेचन । इस सम्पधर्मं मी दो यातें फहनी हैं। इस प्रन्थमें तुकाराम महाराजभ्री गुणावडी और भगबध्कृपाके प्रसद्ोंका य्णन पाठक पढद़ेंगे | इस गरुणावक्ली और मगवस्छृपाफे दिम्य प्रसक्ष मद्ाराणके चीयनकाछर्में सयपर प्रकट हो चुके थे । इस फारण उनके समकाछीन तथा पश्मात्‌काछीन समी संत फंवियोंने प्रेममें बिमोर होकर उनका घणन किया है | इन्द्रायणीके दहमें दुकारामकी यहियोंकों मगवानने जछ से उपार छिया। यह घटना संयत्‌ १६९७ से भी पहले फोएद्रापरतक गवाय कैक तुष थी | धसी संयत्‌ १६६७ का एक छेख यहिणायाईके, सास्मघरिषमें भिरूचा है कि फोह्हापुरमें जयराम स्वामी हरिकीर्तन करते हुए भीतुकाराम महाराजके अमन्र गाया करते ये। रामेश्वर मने एकाराम माराणष्टी जो स्वृति फी है उसका प्रसद्ध आगे भावेगा ही । रन्हींकी एक आरवीर्मे एफ चरण इस खआाशयका है कि, 'पर्यरसदित पहियोंका जरूपर ऐसे रुखा जैसी छाई छिटफी हो। ভইহ वैकुण्ठ गमनके भिपयमे रक्ननाथ स्वामीफा बड़ा दी सुन्दर पद सत्तिम अध्याय्मे




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