जीत ज्योति भाग २ | Jeet-jyoti Bhag-2
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
266
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ६५ )
जाणों नही मतलब में कुछ भी, अपनी अपनी ताणो,
पर निन््दा करवा के पहली खुद ने तो ' पहचाणों ।
भरया है अवगुण कितराई ॥
पूट हटा कर सत्य को घासे करो परस्पर प्यार,
'जीतः कसे नित्त प्रित धसं से होवे ভা নাহ।
धमं द्यी ই सच्चा सहारे ॥
৯. ^ क
1 कहकर जयन्त ] /
( त {-देखो देखो जी बदरा छाए जिया घबराए )
देखो देखो जी जिया हरषाएः जयन्ती मनाए ॥ टेर ॥
सिद्धार्थ! के नंद आप हो, त्रिसला लांल कहाए।
चैत सुदी तेरस को जन्मे घर घर आनन्द छाए '॥ देखो ॥
জন্ম হী জবা मे आकर के, चमत्कार दिखलाये।
लघा अगुंठा मेरु घुजाया, महावोर कहलाए ॥ देखो ॥
राज पाट धन धाम छोड़, फिर धम स्नेह लगाए।
सुख को छोडा कर्थ को' तोड़ा, भवभव वंघ छुड़ाए ॥ देखो ॥
चंड कौशिक को तारा, चंदन बाला की लाज बचाए]
समता धारी हिम्मत न हारी, कानो कीले दुकाए् । देखो ।
पढ़ा अहिंसा पाठ, जगत मे मन्डा जेंन लहराए।
गौतम गण घर सरे चेलौ ने घर घर अलख जगार ।। देखो ॥
उसी वीर का लगा हुआ, एे पेड माज कुमलाए |
युवकगण अवं उठो कमरकस कुतो कर दिखलाए । देखो ॥
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