जीत ज्योति भाग २ | Jeet-jyoti Bhag-2

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ६५ ) जाणों नही मतलब में कुछ भी, अपनी अपनी ताणो, पर निन्‍्दा करवा के पहली खुद ने तो ' पहचाणों । भरया है अवगुण कितराई ॥ पूट हटा कर सत्य को घासे करो परस्पर प्यार, 'जीतः कसे नित्त प्रित धसं से होवे ভা নাহ। धमं द्यी ই सच्चा सहारे ॥ ৯. ^ क 1 कहकर जयन्त ] / ( त {-देखो देखो जी बदरा छाए जिया घबराए ) देखो देखो जी जिया हरषाएः जयन्ती मनाए ॥ टेर ॥ सिद्धार्थ! के नंद आप हो, त्रिसला लांल कहाए। चैत सुदी तेरस को जन्मे घर घर आनन्द छाए '॥ देखो ॥ জন্ম হী জবা मे आकर के, चमत्कार दिखलाये। लघा अगुंठा मेरु घुजाया, महावोर कहलाए ॥ देखो ॥ राज पाट धन धाम छोड़, फिर धम स्नेह लगाए। सुख को छोडा कर्थ को' तोड़ा, भवभव वंघ छुड़ाए ॥ देखो ॥ चंड कौशिक को तारा, चंदन बाला की लाज बचाए] समता धारी हिम्मत न हारी, कानो कीले दुकाए्‌ । देखो । पढ़ा अहिंसा पाठ, जगत मे मन्डा जेंन लहराए। गौतम गण घर सरे चेलौ ने घर घर अलख जगार ।। देखो ॥ उसी वीर का लगा हुआ, एे पेड माज कुमलाए | युवकगण अवं उठो कमरकस कुतो कर दिखलाए । देखो ॥




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