सूत्रकृतांगसूत्र भाग - 1-2 | Sutrakritangasutra Bhag - 1-2
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
48 MB
कुल पष्ठ :
814
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)आचारांग सूत्र का सम्पादन करते समय यह अनुभव होता था कि यह आगम आचार-प्रधान होते
हुए भी इसकी वचनावली में दर्शन की अतल गहराइयां व चिन्तन की असीमता छिपी हुई है। छोटे-
छोटे आर्ष-बचनों में द्रष्टा की असीम अनुभूति का स्पन्दन तथा ध्यान-योग की आत्म-संवेदना का गहरा
'नाद' उनमें गुंजायमान है, जिसे सुनने-समझने के लिए 'साधक' की भूमिका अत्यन्त अपेक्षित है। वह
अपेक्षा कब पूरी होगी, नही कह सकता, पर लगे हाथ आचारांग के बाद द्वितीय अंग --सूत्रकृतांग के
पारायण में, में लग गया।
सूत्रकृतांग के दो श्रुतस्कन्ध हैं। प्रथम श्रुतस्कन्ध पद्चशेली में सूत्रप्रधान है, द्वितीय गद्यशैली में
वर्णन-प्रधान है।
सूत्रकृतांग प्रथम श्रुतस्कन्ध, आचारांग की शैली का पूर्ण नहीं तो बहुलांश में अनुसरण करता है।
उसके आचार में दर्शन था तो इसके दर्शन में 'आचार' है। विचार की भूमिका का परिष्कार करते हुए
आचार की भूमिका पर आसीन करना सूत्रकृतांग का मूल स्वर है --ऐसा मुझे अनुभव हुआ है।
'सूत्रकृत' नाम ही अपने आप में गंभीर अर्थसूचना लिये है । आर्यसुधर्मा के अनुसार यह स्व-
समय (स्व-सिद्धान्त) और पर-समय (पर-सिद्धान्त) की सूचना (सत्यासत्य-दर्शन) कराने वाला शास्त्र
है।* नंदीसूत्र (मूल-हरिभद्रीयवृत्ति एवं चूर्णि) का आशय है कि यह आगम स-सूत्र (धागे वाली सूई)
की भांति लोक एवं आत्मा आदि तत्त्वों का अनुसंधान कराने वाला (अनुसंधान में सहायक) शास्त्र है।*
श्रुतपारगामी आचार्य भद्रबाहु ने इसके विविध अर्थो पर चिन्तन करके शब्दशास्त्र कौ दृष्टि से इसे
--श्रुत्वा कृतं = ' सूतकड'' कहा हे --अर्थात् तीर्थकर प्रभु की वाणी से सुनकर फिर इस चिन्तन को
गणधरों ने ग्रन्थ का, शास्त्र का रूप प्रदान किया हे । भाव की दृष्टि से यह सूचनाकृत्-' सूतकडं ' --
अर्थात् निर्वाण या मोक्षमागं की सूचना-अनुसंधान कराने वाला है ।*
' सूतकडं' शब्द से जो गंभीर भाव-बोध होता है वह अपने आप में महत्त्वपूर्ण है, बल्कि सम्पूर्ण
आगम का सार सिर्फ चार शब्दों मे सनिहित माना जा सकता हे ! सूत्रकृतांग की पहली गाथा भी इसी
भाव का बोध कराती है---
बुज्झिज्झ त्तिउद्ेजा --समझो, और तोड़ी (क्या)
बंधर्ण परिजाणिया ---बंधन को जानकर।
किमाह बंधण्ं वीरो---भगवान् ने बन्धन किसे वताया है?
कि वा जाणं तिउड्॒इ ---और उसे कैसे तोडा जा सकता हे?*
२ नदीसूत्र मूत वृत्ति पृ ७५७, चूर्णि पृ. ६३.
३ देखिए निर्युक्ति-गाथा १८, १९, २० तथा उनकी शीलांक वृत्ति
४ सूत्रकृताग गाथा १
मसम्पयादकोय / १३
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