हिंदी भक्ति श्रृंगार का स्वरुप | Hindi Bhakti Shrangar Ka Svarup

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Hindi Bhakti Shrangar Ka Svarup by बनारसीदास चतुर्वेदी -Banarasidas Chaturvedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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धर्म मैं काम कौ परम्परा १ उत्पम्न हुआ जिसकी समिषा पूर्य है अर्थाव्‌ जो सूर्य बिम्य के रूप में प्रम्मलित रहता है अणति चे चरमा उन्न हुमा अनामा से मेद्र उत्पस्श हुए ॥ मेर्षों से दर्षा हाय पुष्प में भाला प्रकार की शौपधियाँ उत्पस्त हुई। उस खौपधियों के भशण से उत्पस्न हुए दी्े को शब पुरुष झपदी जाति की स्त्रौ में सिचन करताई तब उससे सहान जत्पस्त होती है। इस प्रकार परम पुरुप परमेश्वर से ये नाना प्रकार के अराचरए जीव उत्पस्त हुए हैं। (उपभिपदांक पृ २७३) इबेठाश्डतरोपमिपद का मंत्र ठपा सांख्य-सास्त के बौज मेहर का इसपढारा सबत मताबरूबी जर्प करते हैं कि प्रति एक तिरबी बकरी है णो बढ़ जीव रूप बकरे के संयोग से शपी ही जैसी तिरंगी तिगुणमयी सत्तान उत्पन्न करती है। (होप १८४८६) बुहृदारध्यक तो अपनी प्रतीकाप्मक पौली के तिपु प्रसिडहीहै। मानमक़ी पूर्षठा तथा उसड़ौ इच्छार्शों का दर्णन करते हुए इसमें कहा गया है-- पहले एक सह बारमा ही था। छसते कामना की कि मेरे प्रो हो फिर मैं संतान रूप से उत्प्ण होऊ तथा मेरे बन हो फिर मैं कर्म कुझ ।” बस इतती ही कामना है। इच्छा कएने पर इससे अधिक कोई नहो पाता। इसीसे অব লী ঘৃক্ষার্দী पुरप पह कामना करता है कि मेरे स्त्री हो फिर मैं पंतान रूप से उत्पत्न ছক শত गैरे बन हो तो फिए हैं कर्म करू | बह अजब ठक्‌ इ ते पक को भौ प्राप्य शहीं करता हब तक बह प्रपने को अपूर्ण ही माधता है। उसकौ धूर्मता इस प्रकार हांती ধ-_ 'यत ही इसका शाए्मा है दाकी स्थ्री है प्रार भुलान्‌ है जीर तेत्र मागुप वित्त है गबोकि बह सेश से ह्वी बौ झादि मातुप-बित्त को जागठा है। भोज रेब-वित्त है क्योकि ध्योठ से ही बह सुना । भार्म ( परीर) ही इसका कर्म है बरयोंकि आत्मा से ही यह कर्म करता है। (बही ष्‌ ५६९) शुहदारध्पक में चार्रों बच्चो की सृष्टि का उपास्यात भी प्राप्त है। इसके अनुसार बह ( प्रथम पुरुपाकार झारमा ) मयमीत ही णपा। इसीसे लकेशा पुरुष भय ्ाला रै । उपने मह्‌ विचार किया 'মহি मेरे सिवाय कोईं बूसरा লা है तो मैं किससे डरता हूं! तभी इसका भय निषत्त हो पया। डिन्तु मज बर्षों हुमा ? बर्षोकि मय तो बूसरे से हो होता है। बह रमय तहीं करता ला ( इसी कारण अब मी एकाकौ| पुश्य रच हहीं करता उसने दूसरे कौ एक्टा की । जिस प्रडाप परस्पर मालखियिक स्त्री भौर पुरुष होते हैं बै कार ही बतका परिसाच हौ पया । ভজন খর অলী देह को ही दो भायो मे बिमत्त कर शला | झससे पति और पत्नी हुए | इसलिए यह धररीर অব বুল ( গিহল জান কা হল) कै ममान है 1 इसलिए पह॒ (पृस्षार्ध) आकाय स्त्री सै पूर्ष हाता। बह অন




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