साहित्य - सरोवर | Sahitya Sarovar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ७ ) श्राया हूँ श्रीक्ृष्ल चोले-अक तू निमंथ चला जा, हमारे पद के चिन्ह तेरे सिर पर देख तुझ से कोई न बालेगा। ऐसे कह श्रीकृष्णचन्द्र ते तिसी समय गरुड़को दुल्लाय कातो के मन का भय मिटाय दिया | तव॑ काझी ने धूप, दीप, नेवेद समेत विधि से पूजा कर बहुत सी मेंद श्रोकृष्ण के रागे धर कर हाथ जोड घिनती कर घिदा होय कहा-- चार घरी नाचे सा साथा। यष्ट भमन प्रीति राखिये नाथा ॥ यो कह दणडवत छर काली तो कुटुम्ब समेत रौनक दीप को गया ओर श्रीकृष्णचन्द्र जल से बाहर आये । , उद्धरणी १-- श्री शुकदेव जो ने राजा परीति से काली के विषयमे क्या बात कद्दी ? २--भ्रीकृष्ण जी ने नाग को किस भोति नाथा ? संक्षेप में वर्णन करो । ३--अम्त से क्या क्या गुण हैं? ,. -- ४--नीचे के मुद्दावरों का श्रथ स्पष्ट करो :-- विप डगब्नना,, तेज सहना, हाथ पसारना | नीचे के शब्दो के शुद्ध संस्कृत शब्द बताओ :-- पष्ठी, दुध, गद, सामथ । | ६--नागपली ने भगवान कृष्ण से क्‍या प्राथना की थी ?




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