रचना - रत्नाकर | Rachana Ratnakar

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Rachana Ratnakar by बुद्धिनाथ शर्मा - Buddhinath Sharmaहरिदत्त शास्त्री - Haridatt Shastri

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हरिदत्त शास्त्री - Haridatt Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( हे ) न रहो होंगी | यह बात ओर है कि वह साहित्यिक भाषा रही हो । जनता के नेतिक व्यवहार की भाषा प्राकृत रही होगी; क्योकि इसका प्रमाण प्राकृत को घाच्या्थं स्वयं हे । संस्कार उसी का होता है जिसका पहिले कोई घिक्त रूप भी रहा हो, यदि प्रात के रूप में कोई घिकार न होता; तो उसके संस्करण की कोई प्रावश्यकतादह्ीन पड़ती श्रौर तव संस्कृत भाषा के भी दर्शन न होते | निष्कर्ष यह हे कि यह दत्त श्रपने प्रतियोगी कै विरुद्ध प्राकृत की प्राचीनता का समर्थक है, योर भाषा के समग्र रूपान्तरों का उसी का क्रमिक विकास मानताहे। श्रस्तु. संस्कृत झ्मोर प्राकृत दोनों भाषाश्रं की प्राचीनता के सम्बन्ध में दोनें ओर से बहुत कुछ कद्दा जा सकता है | परन्तु यह एक सघंमान्य सिद्धान्त है कि हिन्दी का जन्म शुरमेन देश वजमयडल में शोरसेनी प्राकृत भाषा से हुथ्मा है । कुक घिद्दानों का मत हे कि प्राच्रीन हिन्दी का श्रारम्भ धिक्रमीय अपष्टम शताब्दी में हुआ था। ऐसा मत स्थिर करने के लिये विद्वान कतिपय नत्कालीन ग्रन्थों का उद्लेख करते हैं। परन्तु उन ग्रन्थों के नाम मात्र के अतिरिक्त श्रोर कुछ पता नहीं चलता । ये ग्रन्थ पद्यवद्ध वतलाये जाते हैं। इससे यह श्रनुमान करना कुछ कठिन नहीं, कि इससे पहिले गद्य रहा होगा और गद्य से कहीं पदिले भाषा बोलचाल के रूप में रही होगी; क्योंकि किसी भी भाषा के क्रमिक घिकास का यही सिद्धान्त है । इस तक के झनुसार यह सिद्ध হালা है कि अष्टम शताब्दी से बहुत पिले लोग पने विचारा की अभिव्यक्ति हिन्दी भाषा के द्वारा करने लगे होंगे । हिन्दी भाषा का प्राच्चीनतम उपलब्ध ग्रन्थ भी पद्यवद्ध है । इससे यदि कोई तके घिशारद्‌ इस बात का श्रनुमान करने लगे, कि उस समय लोगो की व्यावहारिक माचा




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