भारतीय इतिहास और संस्कृत का विकास | bharatiya ithias aur sanskriti ka vikas
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
150
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ९१७ )
१ सितम्बर सन् १६४६ को लाड वेत्रल ने अन्तःकालीन सरकार
की स्थापना की। १५ अगस्त एन् १६४७ को देश स्वतनन््त्र हो गया।
भारतत्रष के इस स्वाधीनता दिवस में सभी लोगों को परमानन्द ছুঁজা।
पहली वार देश भर में राष्ट्र की पहली ध्वजा फहराई गई |
राष्ट्र की ध्वजा राष्ट्र के गोरव को प्रकट करती है। हम लोगों की
राष्ट्रीय ध्वजा हमें राष्ट्रीय उन्नति का मर्म समझाती है | किसी भी राष्ट्र
को सच्ची उन्नति उनकी कम॑शक्ति की गति ओर उसके सुशासन की
सुब्यवस्था पर निमर रहती है। संसार में अपने कर्म चक्र या शासनचक्र
को प्रवर्सित करने के लिए यह आवश्यक है कि हमारे जीवन में ज्ञान,
के साथ शक्ति और शक्ति के साथ सम्पत्ति का मेल हो । बिना ज्ञान
शक्ति फेबल विनाशकारिणी होती है और सम्पत्ति भी हमें अधः्पतन
की ओर खोंच ले जाती है। एकमान्न सम्पत्ति या शक्ति के उपाजन
से राष्ट्र की सच्चा उन्नति सस्भव नहीं है। यह बात सभी लोग जानते ई
कि ज्ञान की देवी सरस्वती शुक्तवप्तना है | इसी प्रकार शक्ति की देवी
दुर्गा रक्तत्सना है और भगवती वसुन्धरा, जिसके द्वारा हम लोगों को
सम्पत्ति प्राप्त होती है हरितवसना है। चक्र के साथ सफेद, लाल ओर
हरे रंग का जो मेल हम लोग अपनी इस राष्ट्रीय ध्वजा में पाते हैं उससे
हमें सदैव यह शिक्षा मिलती रहनी चाहिए कि अपने देश की उन्नति
के लिए, कर्मचक्र प्रवत्तित करने के लिए, हमें शक्ति, श्ञान और
सम्पत्ति--तौनों का समान रूप से उपार्जन करने का प्रयत्न करना
डोगा। किसी भी एक की पपेक्षा करने से हम लोगों के राष्ट्रीय जीवन
का कर्मंचऋ अवरूद्ध हो जायगा | जो ज्ञान के उपासक हैं उन्हें शक्ति
के उपासकों के साथ व्यवसाय और कृषि के उपासकों से भी पूर्ण
सहयोग करना चाहिए। ये चारों, ज्ञान, व्यवताय और कृषि, एक
-दृपरे से संचित होकर ही जीबन को पूर्ण रूप से विकसित करते हैं |
हममें ज्ञान का सात्विक शुभ्र भाव होना चाहिए, इसी से इबेत वर्ण
की महिमा है। हम में शौर्य की लालिमा की दीघि होनी चाहिए।
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