दिवाकर दिव्य ज्योति | Divakar-divya Jyoti
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
328
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पुण्यपथ ओर पापपथ | ` | ५
` पुख्य का उपार्जन करना वड़ा कठिन कोयं है । घन उपाजन
करते में कठिनाई होती है, किन्तु दिवाला-निकाल देने मे कोई परि-
भ्रम नहीं करना पड़ता ! इसी प्रकार पाप का उपाजं॑न सांघारण -सी
बात ই।
दिन उगते ही अस्ेक लोग भैरों-भवानी के पांस जाते है और
उनके श्रागे मस्था टेक कर प्राथना करते हैं कि সু लखंपति या
करोड़पति बना दो । किन्तु एक छखपति त्तव बनता है जब सौ आद-
सिंयों के पांस से एक-एक हजार रुपया त्तिकलता हैं। इंस प्रकार
सी ्चादभियों की पूजी छीनेगा ततव बद् लखपति बनेगा । दसी तरद्
सो लखपतियों के बिगड़ने पर एक करोड़पति बनता है ।
अरे घनिक .! तू अकड़ता है कि मैंने सोने के बटन बनबाये
है; परन्तु यद् तो विचार कर कि यदं बटन किस प्रकार तेरे पास
आये है! तस्करव्यापार किया, बेईमानी की, भोले लोगों को ठगा
ओर अूठ-कपट का सेवन किया, तब यह सोने के बटन बने हैं !
एक आदमी घमरड से सिर ऊँचा करके चलता है 'यौर मूषो
पर ताव देकर कहता ह-मेंने बेटी के विधाद में पचास हजार खर्च
किये ই | ভগ विचारवान् व्यक्ति सोचता - ह-इसके पास. इतना
. ` घन श्राया केसे ? क्या इसने भिहनतत-मजदूरी करके धन कमाया
है ? क्या किसान की तंरद् चोटी से एड़ी तक पसीना . बहाया है?
मिहनत करने वाले तो इतना धन नहीं कमा पाते ।.फिर इसने यह
धन् कंसे कमां लिया ? निह्न्देद इसने गरीबों. का शोषण किया :है, .
ह्यो के साध ठगाई को है, कितने ही के बटके भरे हैं, तब यह एक:
विदद् में पंदास हजार क्षमा सका
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