दिवाकर दिव्य ज्योति | Divakar-divya Jyoti

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Divakar-divya Jyoti  by नवरत्न - Navratn

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पुण्यपथ ओर पापपथ | ` | ५ ` पुख्य का उपार्जन करना वड़ा कठिन कोयं है । घन उपाजन करते में कठिनाई होती है, किन्तु दिवाला-निकाल देने मे कोई परि- भ्रम नहीं करना पड़ता ! इसी प्रकार पाप का उपाजं॑न सांघारण -सी बात ই। दिन उगते ही अस्ेक लोग भैरों-भवानी के पांस जाते है और उनके श्रागे मस्था टेक कर प्राथना करते हैं कि সু लखंपति या करोड़पति बना दो । किन्तु एक छखपति त्तव बनता है जब सौ आद- सिंयों के पांस से एक-एक हजार रुपया त्तिकलता हैं। इंस प्रकार सी ्चादभियों की पूजी छीनेगा ततव बद्‌ लखपति बनेगा । दसी तरद्‌ सो लखपतियों के बिगड़ने पर एक करोड़पति बनता है । अरे घनिक .! तू अकड़ता है कि मैंने सोने के बटन बनबाये है; परन्तु यद्‌ तो विचार कर कि यदं बटन किस प्रकार तेरे पास आये है! तस्करव्यापार किया, बेईमानी की, भोले लोगों को ठगा ओर अूठ-कपट का सेवन किया, तब यह सोने के बटन बने हैं ! एक आदमी घमरड से सिर ऊँचा करके चलता है 'यौर मूषो पर ताव देकर कहता ह-मेंने बेटी के विधाद में पचास हजार खर्च किये ই | ভগ विचारवान्‌ व्यक्ति सोचता - ह-इसके पास. इतना . ` घन श्राया केसे ? क्या इसने भिहनतत-मजदूरी करके धन कमाया है ? क्‍या किसान की तंरद् चोटी से एड़ी तक पसीना . बहाया है? मिहनत करने वाले तो इतना धन नहीं कमा पाते ।.फिर इसने यह धन्‌ कंसे कमां लिया ? निह्न्देद इसने गरीबों. का शोषण किया :है, . ह्यो के साध ठगाई को है, कितने ही के बटके भरे हैं, तब यह एक: विदद्‌ में पंदास हजार क्षमा सका




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