पीले हाथ | Peele Hath
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
134
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पीले हाथ ५9
केदाप्नाय- (अनुनय के साथ गयाभ्रसद् का हाथ. धासंकर)
में जरूर चलता, पर क्या करूँ, विवश हूँ | सो डिग्री का तो इस समय
है। रेल की यात्रा होगी, बरात का कुपथ्य, जागना, टो-दल्ला ठीक नहीं
जान पढ़ता । क्षमा करना गया बाबू |
' गयाप्रसाद--जितने मेरे मित्र हैं, शायढ ही किसी के हों । जिन
जिन के पास गया, सबने कुछ न कुछ अड़चन बतलायी, ऊिसी को फुसंत
नहीं । में तो हाह्म खाते थक गया | जी चाहता है, मर जाऊँ।
केदारनाथ--श्ररे यार, क्या बत़ते हो ! शुभकार्य के समय ऐसी
बात नहीं कहनी चाहिए ।
गयाप्रसाद--( स्वर से और अधिक क्षोत् लाकर ) तत्र और
क्या कहेँ! दस-नारद * रिश्तेदार তু) লী ক) दो-एक सद्पांठी होगे ।
क्या इतने से वरात थ्रच्छी लगेगी ? समधी ने स्वागत का अच्छा प्रत्नन्ध
किया है । बिजली की रंग-तिरगी रोशनी, सजावट, शानदार अ्रमिनन््दन
पत्र, गायन-वादन इत्यारि। श्रौर बरात होगी कुल चोद्द-पन्द्रह
आदर्समिया की | उसमें हम दोनों ताप-बेटे | वेहद किरफकिरी होगी ।
फेदारनाथ--ऊंत्र जा रही है बरात !
गयाप्रसाद-- ( आशा की भलक देखकर, उत्साह के साथ)
कल दं।पहर की বাকী উ।
केदारनाथ--देखूँ कल्ल तक कैसी तब्रियत रहती है !
गयाप्रसोद--अ्रच्छी रहेगी, हहुत अच्छी | तुम चलोगे तो और
मित्र भी तैयार हो जायगे |
केदारमाथ--सो कैसे !
गयाप्रसाद--जत्र लोग सुनेंगे कि त्रीमार होते हुए भी बरात में
जाने के लिए उद्यत हो, तब्र काम की उलमनों का बहाना करनेवालों
को शर्म आयगी और वे साथ हो लेंगे |
फ्रेदारनाथ--हू ।
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