पीले हाथ | Peele Hath

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Peele Hath by वृंदावनलाल वर्मा - Vrindavan Lal Verma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पीले हाथ ५9 केदाप्नाय- (अनुनय के साथ गयाभ्रसद्‌ का हाथ. धासंकर) में जरूर चलता, पर क्या करूँ, विवश हूँ | सो डिग्री का तो इस समय है। रेल की यात्रा होगी, बरात का कुपथ्य, जागना, टो-दल्ला ठीक नहीं जान पढ़ता । क्षमा करना गया बाबू | ' गयाप्रसाद--जितने मेरे मित्र हैं, शायढ ही किसी के हों । जिन जिन के पास गया, सबने कुछ न कुछ अड़चन बतलायी, ऊिसी को फुसंत नहीं । में तो हाह्म खाते थक गया | जी चाहता है, मर जाऊँ। केदारनाथ--श्ररे यार, क्या बत़ते हो ! शुभकार्य के समय ऐसी बात नहीं कहनी चाहिए । गयाप्रसाद--( स्वर से और अधिक क्षोत् लाकर ) तत्र और क्या कहेँ! दस-नारद * रिश्तेदार তু) লী ক) दो-एक सद्पांठी होगे । क्या इतने से वरात थ्रच्छी लगेगी ? समधी ने स्वागत का अच्छा प्रत्नन्ध किया है । बिजली की रंग-तिरगी रोशनी, सजावट, शानदार अ्रमिनन्‍्दन पत्र, गायन-वादन इत्यारि। श्रौर बरात होगी कुल चोद्द-पन्द्रह आदर्समिया की | उसमें हम दोनों ताप-बेटे | वेहद किरफकिरी होगी । फेदारनाथ--ऊंत्र जा रही है बरात ! गयाप्रसाद-- ( आशा की भलक देखकर, उत्साह के साथ) कल दं।पहर की বাকী উ। केदारनाथ--देखूँ कल्ल तक कैसी तब्रियत रहती है ! गयाप्रसोद--अ्रच्छी रहेगी, हहुत अच्छी | तुम चलोगे तो और मित्र भी तैयार हो जायगे | केदारमाथ--सो कैसे ! गयाप्रसाद--जत्र लोग सुनेंगे कि त्रीमार होते हुए भी बरात में जाने के लिए उद्यत हो, तब्र काम की उलमनों का बहाना करनेवालों को शर्म आयगी और वे साथ हो लेंगे | फ्रेदारनाथ--हू ।




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