जैन धर्म के मौलिक सिद्धान्त | Jain Dharm Ke maulik Siddhant

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सनुष्यत्व को दुलेभता लेखक पं. श्री महेशचन्द्रजी जन द ख से छुटकारा पाने के लिए मनुष्य भव भी एक साधन है । न मालूम किस पुण्योदय से हमें यह मानव भव प्राप्त हुआ है । मानव भव की प्राप्ति के लिए देवता भी तरसते हैं भगवान्‌ सहावीर ने कहा है -. कम्माणुं तू पहाणाए आणुपुव्वी कयाइ उ । जीवा सोहिमणुपत्ता श्राययन्ति मणुस्सयं 1। उतराध्ययन अर 3 या 7 अनेकानेक योनियों में भयंकर दुःखों कोभोगते-भोगते जब कभी मनुष्ययोनी को प्राप्त कराने में बाधक कर्मों को क्षय करके जीव जब वुद्धि-निर्मलता को प्राप्त करता है तब मनुष्यत्व को प्राप्त करता है । मोशन प्राप्ति में चार कारण वहुत दुलेंभ बताये गये हैं । उनमें मनुष्यत्व की प्राप्ति को प्रधान कारण बताया गया है भगवान्‌ महावीर ने अ्रपने अन्तिम प्रवचन में कहा है -- चह्ततरि परमंगारिण दुल्लहाणीह जंतुणो । माणुस्सत्तं सुई सद्धा संजमम्मि य वीरियं ।। मनुष्यत्व शास्त्रशवण श्रद्धा और संयम में पराक्रम श्रर्थातु चारिप्न का पालन ये चार साधन संसारी प्राणी के लिए वहत दुलभ हू 1 5




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