पाठशाला प्रबंध | Paathashaalaa Prabandha

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Paathashaalaa Prabandha by पं. सीताराम चतुर्वेदी - Pt. Sitaram Chaturvedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( २३ ) कर स्वतः सुखी श्योर दृससेको यु देनेवाले नागरिकि वन सके । यह स्मरण रखना चाहिए कि “भूखे भजन न होइ गुपाला!। भूख-पेट लोकसेवा नहीं हो सकती | यह भी नहीं भूलना चाहिए कि निधन होकर सात्त्विक जीवनं व्यतीत करना बड़ी तपस्या ओर बड़े संयमका काम हे,--वुभुक्षितः ছি न करोति पापम। [ भूखा क्या पाप नहीं कर डालता | ] इसलिये जहाँ हम परहित-परायणताकी शिक्षा दें वहाँ हम प्रत्येक छात्रमें सदवृत्तिकी यह क्षमता भी उत्पन्न करा दें कि प्रत्यक बालक सचाइके साथ अपनी जीविका कमा सके और समाजमें सम्मानित जीवन व्यतीत कर सके | यह तभी सम्भव है जब बालकोंको कतेव्य-अकत्तेव्यका ज्ञान हो, उन्हें स्वस्थ शरीर मिले आर समाजमें विचरण करनेकी उनमें योग्यता हो। इसका तात्पर्य यह हुआ कि हम बालकोंका ऐसी शिक्षा दें, जो उन्हें स्वस्थ सदाचारी, विवेकशील, त्यागी, संयमी ओर किसी भी अच्छे व्यवसायसे अपनी जीविका कमाने-योग्य बना दे | यह सब तमी संभव है जब शिक्षा देनेवाले अध्यापक भी स्वर्य॑ त्यागी, विद्वान, विवेक- शील, सन्चरित्र ओर वपुष्सान हों। साथ ही यह भी आवश्यक है कि जिस स्थानमें शिक्षा दी ज्ञाय वह स्वस्थ हो, नगरके कोलाहल ओर नागरिक विपाक्त बातावरणसे दर हो और वहाँ छात्रोंके लिये एसी सुविधाएँ हों कि वे परस्पर सहानुभूति ओर स्नेहके बातावरण- मं रदकर संयत तथा सहयोगपूणं जीवन व्यतीतं करतं हूए अपन मन बुद्धि, शरीर आर आत्माकी एक साथ शुद्धि ओर समुञ्नति कर सके क्या सबको शिक्षा देनी चाहिए किन्तु प्रइन यह है. कि क्‍या ग्त्येक व्यक्तिको शिक्षा देनी चाहिए ? जिन लोगोंको विद्यालयों और वालकोंका अनुभव हे, भल्री भाँति जानते हैं कि अध्ययनमें सब वालकोंकी रुचि नहीं होती । अतः यह आवश्यक नहीं हे कि सबको विद्यालयमें शिक्षा दी जाय ।




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