भक्त ध्रुव | Bhakat Dhruv
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
25 MB
कुल पष्ठ :
156
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पिला शरक १
डर पात কী देख रेख कर
डालिन महं पत्तिन धियि । -श्रावो०
हिलमिल कर सब; पूनि देवि आव
मन वांच्छित फल को लहिये। -आवो ०
१ खली--कैखा सुन्दर उपवन है। अहा [ অহ देखो सखी उस
र सरोवर मे खरखिजों का समह केषा सुन्दर माल्म पड़ता
अहा बीच के कमल की शोभा ही निरालीदहै। अरजी वह
' उठा हुआ है पर बीच में खाली है द द
२ सल्ली--खाली क्या ¡ ऐसा तो मेंने कमल द्वी कहीं नहीं
। अह| पीलो पीली पंखुरियों के बीच में रक्त मय निकलतों
कमल ऊपर सुफेदी लिये, हरा हरा बड़ा ही सुन्दर माल्ठम.पड़ता
हाय कहीं इसकी कमंलिनी भी ऐसो ही छुन्द्री होती तो
| की जोड़ ठीक हो जाती ।
३ खखी--हाथ इस कमल के योग्य तो हमारी राजकुमारी हैं |
सुदचि--देखो कमला मुझसे हंसी न करो नहीं तो में यहां
ली जाऊंगी। फिर न आऊंगी और न तुम्हें भी बुलाऊगी ।
कमला--जाबोगी कहां कमल के पास ।
सुरुचि--भला लिट्टी गड़ेरी का क्या संग | सूय को देख कर
ल खिलवा है चन्द्रमा को देख कर कुप्रुदिनी खिलती है, फिर
कमल से तुमने युके कमलिनी बना कर जोड़ी बनाई है यह
गरी केष्वी ভিতাই ই।
४ सखी--डढिठाई नहीं सखी बल्की यह सब कुछ बहाने बाजी
तुम्हारी शोभा बढ़ाई है। तुम्हारा मुख चन्द्रमा की नाई
प्यमान है हम कुमुदुनियों के लिये वह चन्द्रमा के समान है |
12.
देख कर हम ब्ब मारे हष के फूली फिरती हैं।
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