निराला रचनावली 6 | Nirala Rachnawali
लेखक :
नंदकिशोर नवल - Nandkishor Naval,
श्री सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' - Shri Suryakant Tripathi 'Nirala'
श्री सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' - Shri Suryakant Tripathi 'Nirala'
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
33.44 MB
कुल पष्ठ :
563
श्रेणी :
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नंदकिशोर नवल - Nandkishor Naval
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श्री सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' - Shri Suryakant Tripathi 'Nirala'
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सपने धर्म से च्युत हो गये हैं । ग्रब शूद्ों के उत्थान का समय साया ह । बर्णाश्रिम घर्म की वर्वमाने स्थिति शीर्षक ग्रपने सिवन्ध में उनका कहना है . ज्ाह्माण सं निय उ्ौर वैद्य अपने घर में ऐंठने के लिए ब्राह्मण क्रिय बैण्य रह गये । बाहरी प्रति घानों ने भारतवर्प के उस समाज-शरीर को उसके उस व्यक्तिएन को समन तर कर दिया ब्रह्हा-दप्टि से उसका अस्तित्व ही न रहे गया 1 भारतबप का तमाम सामाजिक शक्तियों का यह एकीकरण-काल शूद्ों पर श्स्त्प्जो के उठने का प्रभान- काल है । प्रकुसि की यह कैसी विधित्र किया है जिसने युग तक शुद्ध से अगर तीन वर्गों को सेवा करायी श्रौर इस तरह उनमें एक श्रदम्य शवितत का प्रवाह भरा त्रौर श्रव ग्रनेकानेक बिवर्तनो से गुजरती हुई उठने के लिए उन्हे गे विचिष ढंग से सौका दिया है भारतवर्ष का यह युग णूद्-जव्ति के उत्थान का सुग ४ 1 झोर देश का पु्रुद्धार उन्हीं के जागरण की प्रतीक्षा कर र । चर्तेमात हिस्दे ससाज शीर्षक निवन्व में वे यह कहते हैं कि पराधीन देश के सभी नागरिक शुद्र ही होते है ब्राह्मण लबिय या वैश्य नही . अब यवन ग्रौर गौरागों के 800 वर्षा के शासन के बाद भी हिन्दोस्तान में ब्राह्मण श्रौर क्षत्रिय है जो लोग रस बल वे भुठ तो बोलते ही है ब्राह्मण और क्षत्रिय का झथ भी नहीं समभत । उस समय भारत में न ब्राह्मण है न क्षत्रिय न वैश्य है सप शूद ही 1 ठसी निधन सें वे श्रसवर्ण विवाह के प्रचलन से वर्ण-समीकरण की कल्पना केरल हूँ . बण- समीकरण की इस स्थिति का ज्ञान चिद्या के द्वारा हो यहा के लोगो बा हो सब सा है। इसके साथ-ही-साथ नवीम भारत का रूप सर्गाठित होता जायगा श्र यहीं समाज की सबसे मजबत श्ंखला होगी । यही साम्य पश्चात वर्ण-बफग्य में ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य के रूपों में पुन संगठित होगा । श्रभी सिराला क्रा ध्यात वर्ण पर ही था. वर्ग पर नहीं इसलिए हमारे समाज का भविष्य रूप शीपने टिप्पणी में उन्होंने जन्म की जगह कर्म को बर्ण-व्यवस्था का झाधघार बनाकर उसी को चलाते रहने की वात कही हर मनुष्य में ब्राह्मण-क्षत्रिय-बेश्य-शुद्-भाष 2 मातावुसार यहाँ तक कि आ्रासुरी अर दिव्य भाव भी । किसी भीजाति में पदा हुमा मनुष्य हो जब बहू पढता-पढ़ाता है --जानानुशीलन करता है न्ाह्मण है उसके अन्दर देश जाति विश्व या किसी की भी रक्षा के भाव उठती हैं तब बह क्षचिय है जब जीविकार्जन के लिए वह व्यवसाय-बद्धि का उपयोग करता है सब बश्य है जब वह अपने सांसारिक सुख की प्राप्ति के लिए दूसरों की परश्त्िया करता हू तथ वह गूद्र हैं । इस संशोधन से वे विभिन्न बर्णों के बीच ब्यार। भद-धाव को खत्म करना चाहते थे राजनीतिक तथा सामाजिक प्रचलन रे से। सच्चे म्ुष्य निकलेंगे वे ही यथाथ॑ं नेताओं की तरह ब्राह्मण दनिय बेश्य शा रे शूद्रों की सुष्टि श्रपने गुण कर्मानुसार करेंगे श्रौर उस स्वतन्थ भारत मे ठस सन व्यवस्था से केवल परिचय ही प्राप्त होगा उच्च-नीच निर्णय नहीं 1 प्रसार समाज शीषेक निवन्ध उनकी यह मान्यता दिनन्यतिदिन दृढ़ होती गयी शोर थे निम्न वर्णवालों के प्रति उच्च वर्णवालों के तिरस्कार के भाव के प्रति प्रस हिगण होते गये। हिन्दुय्ों का जातीय संगठन शीर्पक टिप्पणी में ने उच्च बर्पमालों को लक्ष्य कर कहते है वे दूसरी स्वतस्त्र जाति ध्रम्रेज-सम्पादक है से घरावरी में अधिकार लेना चाहते है पर धर में उन्हीं के भाई पैरों पद हुए ऊंबे श्र्िकारो में लिए रो रहे हैं । उस दिन तक चमार उच्च वर्णवालों के कुएं मे पाली गहीं भर सकता था | ग्रव भी अधिकांश जगह नहीं भर सकता । मुसनमान आर ईसाई यही डॉटकर हि्दुपों को रोककर पहले श्रपना पानी भर से सकते हैं 1 निराला में इस 12 निराला ्ठ
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