छटता कोहरा | Chhatata Kohara

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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1.23 बूथ लूटे जा रहे थे । भगदड़ मच गयी । में हक्की-बक्की खड़ी कुछ सोच नही पा रही थी कि क्या करूँ... किधर जाऊँ ? इतना मोचते-न-स्रोचते गोली-बम चलने-फटने लग. कुछ जिन्दा लोगं पके आमो कौ तरह पट्‌-पट्‌ धरती पर गिरने लगे ! यह दृश्य देखकर मरी चीख निकल गयी “बचाओ ।'' इसी के साथ मेरी दृष्टि खड़े कुछ पुलिस को सिपाहियो पर पड. मेरी ओंखो मे आश व्मौ चमक आ गयी और मै लगभग भागते हुए उस आर बढ़ी । यह देखकर मेरे आश्चर्य का ठिकाना गे रहा कि पुलिस की पिकअप धूल के गुबार मे गाबब हो गयी थी. मै भी उस गुबार में अभिमन्यु की तरह घुस गयी ओर कुछ आगे दौडने पर में उस पिकअप के सामने थी सांचा इनसे कहें कि वहाँ देखिए न, कितन लाग मारे जा रहे है और आप यहाँ. किन्तु अगले ही क्षण मैने सोचा जो पुलिस स्वय अपनी जान बचाने हंतु यहाँ आकर छुप-सी गयी है वह लोगो की क्या मदद करेगी ? देखा भीड गोली-बम कं धुर्य नं खो गयी है । मेने महसूस किया कि मरी अख ने चिंगारियों निकलने लगी थी. ओर मेने जमीन से एक अद्धा उठा लिया, सोचा पिकअप पर चला दूँ. फिर यह सोचकर कि कायरा पर हमला करने से भी क्‍या फायदा और मेरे हाथ में पकड़ा अद्धा स्वत: ही छूट कर नोचे गिर भया था । # 5 छटता कोहरा




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