Ashok by भगवती प्रसाद पांथरी - Bhagwati Prasad Panthari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सपा एव मय स्थिर प्ः . शोक विदित होता है कि इन कथा-वस्तुश्रों का ध्येय ब्राह्मणु-घर्मी चाएडा- शोक श्रौर बोद्धघर्मी धर्माशोक. के मध्य अन्तर दिखलाना था। इसी हेतु बौद्ध-घ्म ग्रहण करने से पूव अशोक को एक “नरक” का निर्माणुकर्ता भी कद्दा जाता है। इसे नरकागार में कई. निरपराघ व्यक्ति, विभिन्न यातनाश्ओं द्वारा पीड़ित किये जाते थे ((51128 छिपते- छा 96-98, . 4 सी-यू-की छए. 85) लिखता है, “पाटलिपुन्र ( पात्तली इच्त के लड़कों का नगर) के प्राचीन प्रासाद के उत्तरी भाग ' में एक कई फीट ऊँचा पत्थर का स्तंभ है; यह वही स्थान है जहाँ. पर अशोक राज ( 9 ने नरक बनवाया था ।”: परंठु पीछे उपयुस* के प्रभाव में श्राकर वे बौद्ध हो चले । इसके अतिरिक्त ““्रशोकावदान” में कमेंचारियों श्रौर ख्रियों के संहारक के रूप में दिखलाया गया है । तथा उसे ब्राह्मणों को मरवानेंवाला भी कहां गया है । अतः प्रकाशित हैं कि इन गाथाशओओं का उद्द श्य अशोक को बौद्ध-घर्सी होने ' से पहले ““चार्डाशोक” प्रमाणित करना है | उनका ध्येय अशोक के पूव चरित्र को कलुषित्र करके श्रपने धर्म की प्रतिभा प्रमाणित करनी थी कि - बौद्ध-धम ऐसे दुश्चरित्रों को भी पुण्यशील बना सकता है' | कया अशोक क्र एवं थे ?--यदि श्रशोक ने सिंदासन के युद्ध में केवल एक भाई का निधन किया तो: इसके प्रति अशोक को “ाण्डाशोक” कहना उपयुक्त नहीं है। दक्षिणी गाथाओं के अनुसार भाइयों के निधन की संख्या झलंकारिक हे । यह भी कहा जा सकता हे कि ये भ्रातृगण सोतेले भाई थे । मद्दाबोधि- वंश ( पृष्ठ €€. ) के श्रनुरूप ६८ भाइयों ने मिल कर युवराज सुशीम की श्ध्यक्षतां में अशोक के 'विरुद्ध चढ़ाई की । अतः ऐसी श्रवस्था में अशोक भाइयों के मारे जाने का उत्तरदायी नहीं है । किन्ठु इन १उपयुप्त को बिना चिन्हों वाला बुद्ध भी कहते हैं । (अलक्षणा वुद्धाः ।)




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