क्रांतिकारियों के जन्मस्थल | Krantikariyo Ke Janmsthal

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Book Image : क्रांतिकारियों के जन्मस्थल  - Krantikariyo Ke Janmsthal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कचहरी मे चपरासी है। सबको खाने भर को तनख्वाह मिल जाती है | में हँसते हुए कहता हँ---“वहों ऊपर की आमदनी भी तो होती है? थोड़ी मुस्कान के साथ वे कहते है--“हाँ, साहब, कचहरी में तो पुराने जमाने से पेशकार को हक और चपरासी को बख्शीश बेधा चला आ रहा है । লায়ঘন बताते है--“अखबार वाले कभी-कभी आते है। वे भी पूछताछ करते हैं। भाई साहब ! मैं तो साफ-साफ कहता हूँ---जब सरकार चाहे, यह मकान बिस्मिल भैया कौ यादगार बनाने के लिए मुझ से ले ले, मे देने को तैयार हूँ। मगर ऐसा है कि हम को रहने के लिए इसी खिननी बाग या खटिया मोहल्ला मे मकान बनवा दे ।” नारायन बहुत भावुक हो जाते है, कहते है--“कहिए तो मै लिखकर दे दूँ, राजी से देने को तैयार हूँ। कई बार यहाँ के नेता.लोगो ने मुझ से बात की पर सब टॉय-टॉय फिस्स ! अरे भाई, उन को अपनी कोठी-बेंगला-कार से फुर्सत नही । बिस्मिल की यादगार कौन बनवाएगा ? सब मवकार हैँ बाबू, सब नोच-खसोट मे लगे है | देश की फिकर किस को है 2” नारायन के वाक्य मेरे अतर्मन को हिला देते है, आँखो के सामने अँधेरा-सा छा जाता है। इसी नगर मे राष्ट्रीय स्तर के एक नेता रहते है । उन की रगो का खून पानी मे बदल गया है, क्या वे आँखों के अथे हो गए है ? हाँ, वे अंधे जरूर हो गए है। स्वार्थ और परिवार के लिए अंधे हो गए हैं । अब मै मकान के अन्दर जाता हूँ। उस स्थान को शीश झुकाता हूँ जहाँ माता मूलमती की कोख से शेरे-वतन ने जन्म लिया था। बिस्मिल इस स्थान पर पैदा हुए थे, यह सोचकर में कॉप उठता हूँ। उपेक्षा के गहन अथकार में डूबा यह स्थल हमारी अर्चना का स्थल है, हमारी पूजा का मदिर है । निस्सदेह यह अर्पण की भूमि दै, तर्पण की भूमि है, वन्दन की भूमि है, अभिनन्दन कौ भूमि है। इस मिट्टी का कण-कण भारत के प्रत्येक नागरिक मे राष्ट्रीय अस्मिता, जातीय शौर्य और बलिदान की भावना भरता है | मन विह्नल हो रहा है, आँखो मे ग्लानि का सागर उमड रहा है और घृणा के करोड़ो बिच्छू डक मार रहे है! अन्दर की सॉस के साथ शब्द निकलते है---इस मिट्टी से तिलक करो, यह मिट्टी है बलिदान की ।' और मैं बोझिल मन और शिथिल तन से उस भूमि पर लोट जाता हूँ । माँ मूलमती और पिता मुरलीधर के लाडले ने इस घर मे किलकारियाँ “बस्मिल “ का खिरनी बाग / 17




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