वन्दे वाणी विनायकी | Bande Vari Vinayak Ki
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
150
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)द
[দি (क ১.
साहित्य का उपच्ा
हम साहित्य को अपने जीवन में वह स्थान नहीं देते, जिसका बहु
हकदार है | हम साहित्य को एक फालतू चीज समभते हैं । किसी व्यक्ति
की राय का मखौल उडाना हो, तो झ्ाप कह दीजिये - यह साहित्यिक
झहरे न ? साहित्य को हम फुर्सेत की, तफरीह की चीज मानते है । घर मे
बेकार बेठे है, वक्त काटे न कट रहा है--आइये, किसी साहित्यिक कृति
कने पन्ने उलट ने । श्राज जी उदास है, मन भारी है, किसी काम में चित्त
नही लग ॒पाता---चलिये, वगल कै फिमी साहित्यिक दोस्त से दो-दो
ह्मी वाते कर त्राये । वह् साहित्यिक यदि कवि हरा, नो फिर क्था
कहना *
साहित्य की इस उपेक्षा, इस मखोल के लिए कुछ तो हम साहित्यिक
खुद दोषी है! हम साहित्यिक स्वय अ्रण्ने अ्रस्तित्व का महत्त्व और
गभीरता अनुभव नहीं करते । अपने को सृष्टि का एके अद्रुत जीव मान-
कर उसी के श्रनुरूप श्रपनी वेप-भुपा. भाचार-व्यवहार तक रखने लगे हे ।
हम साहित्यिक है, इसलिये हमारी पोशाक मे एक विचित्रता होनी
चाहिए , हमारे कपडो पर पान के धब्बे हमारी शोभा है , टिस के दिन
सिगरेट फूंक जायें, तो बुरा क्या ? हम घराब भी पी सकते हैं, दुराचार
के लिए भी हमें थोडी माफी मिलती चाहिये | बताइये, ऐसे जीबों को
कोई समाज अपने यहाँ प्रतिष्ठा और गम्भीरता का पढ केसे दे
सकता है
दूसरा कारण यह है कि हमारा यह यूग राजनीति का यूग है। कल
तक हम पर बलिदान का भूत सवार था, आज ग्रभुता की चुडैल सवार
ই । गुलाम देश जब श्पनी जजीरे तोड़ने मे लगा था, तब उसकी आँखों
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