शाक्य | Shakya
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
838 KB
कुल पष्ठ :
108
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भाज भ्रापका यद् शोमित
उससे ही সানাই
प्राह्हादित हो करें न मन भे ह &\
बुद्ध भी प्राप विषाद। (५५) वि
राजन् इनके जन्म-जन्म केः
हैं. प्रदमुत प्रारणन, 5)
जन्मजात ये ज्ञानी भुनि हैं
मत समझें नादान। (१६)
कपिलवस्तु का राजवंश यह्
অন্য ই प्राज कृतां
जिस त भे प्रवतरित हूए ह
प्रति सुन्दर सिदायं ! (५७)
इनका मून वेराग्य भाप मत
हो ढ् नौ विभिन, 1
सुम्मवदै नयने सन्यासी
सष में होकर दिप्त। (४८)
जरा-जीणं रोगी कमी ये न देखें, . ` -
नहीं चित्त मे स्वत्म स॒न्ठाप पार्ये
सदा कीनिषएु মলে है भुष ऐसा
व्यया विश्व से ये न कमी कांप जावें। (५६)!
গুহ! সর ही यत्न ऐसा करूगा
प्रिय सुन पह मेरा दम्य में ही रहेगा,
अनुभव न करेगा विश्व की बेदना का,
सुखद-मवन में ही सौस्य सारा रहेगा । (५०)
५ & টাল
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