प्रारम्भिक नागरिक शास्त्र भाग 1 | Prarambhik Nagrik Shastra Bhag 1

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Prarambhik Nagrik Shastra Bhag 1  by आनन्द प्रकाश -Aanand Prakash

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नागरिक शास्त्र का परिचय 3] मनुष्य के सारे कार्यो को एक सागरिक के रूप से बताया साता है। नागरिक शास्त्र का क्षेत्र बडा फेला हुआ है और इसकी पहुँच [ 10गा8 | से मानों सम्पूर्ण समाज आ जाता हैं। हम में से दर एक व्यक्त का एक परिवार है जिसमें इमारे साता, पिता, भाई, बहिन श्रादि शामिल द । बहुत से लोगों कौ एक वरिरादरी होती है, निममे उनके विवाद आदि सम्बन्ध होते ई । हर एक मनुष्य किसी गावा नगर मे रहता हैं, जहां उसके पडोसियों था दूसरे लोगों से अनेक प्रकार के सम्बन्ध होते हैं । हर एक मनुष्य का किसी धार्मिक सम्प्रदाय | ८९11100 ] से सम्बन्ध होता है और उसका उस सम्प्रदाय वथा अन्य सम्प्रदायो के मानने वाज्ञो से उचित व्यवहार रफ़ता पढ़ता है। इसके श्रतिरिक्त हर एक मलुष्य अ्रपनो जीविका के लिए कोई न कोई ब्यवसाय भी करता है। कोई वैद्य है, कोई डाक्टर है, कोई अध्यापक है, कोई किसान है और कोई दुकानदार है। हर एक सनुप्य किसी राज्य में रहता हे और 'उसको सुविधाओं को भोगता है, कर देता है और उसके शासन विधान के निय्रमो [ कानूनों ] का पालन करता है। वास्तव में सारे मनुष्य एक दूसरे से और भिन्न र संस्थाओं से कई प्रकार से जुड़े हुए हैं। इन सभी सम्बन्धी का अध्ययन करना प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य दो जाता है। २--नागरिक शास्त्र के चेत्र का विषय भूत वर्तमान श्रौ भश्रिष्य तीनों कालो प्र श्राघारिति दै ॥ प्रत्येक परिस्थिति का अध्ययन तीनों कालों के सम्बन्ध से किया जाता ই। ঘূক बिपय विशेष का प्राचीन काल में क्या स्वरूप था, प्राचीन काल के अनुभव से उसके थ्राधुनिक स्परूप के निर्णेय करने में क्या सदायता मिलती है, तथा भविष्य से उसके स्वरूप को लाभदुयकर रूप में रखने के लिये क्‍या २ उपाय सोचे ज्ञा सकते हैं? उदादरण के জিন नरो में स्वास्थ्य, सफाई और हरिजन उत्थान के विषय को ले और विचा , करेंक्षि रग्राघुनिक वैज्ञानिक युग सेंसकोाई के पुरारे तरीन.




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