रस - सिद्धान्त स्वरूप - विश्लेषण | Ras Sidhant Sawroop Vishleshan

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Ras Sidhant Sawroop Vishleshan by आनंद प्रकाश - Aanand Prakash

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्राक्कथन प्रस्तुत ग्रथ मेरे काव्य मे रस' नामक शोघ-प्रचन्ध का एक खण्ड-मान्न है । सोध-प्रवन्ध प्राचीन भारतीय काम्य-समीक्षा-सिद्धान्त रस का पुनः परीक्षण श्रौर पुनगंठत करने के उद्देश्य से सस्कृत, हिन्दी, मराठी, वगला, गुजराती तथा अग्रेजी के तत्सम्बन्धी ग्रन्थों के श्रष्ययन के झननन्‍्तर लिखा गया है। लिखते समय मुख्यत तीन हृष्टियो से काम लिया गया है. (१) रस-सिद्धान्त के आरम्भ, विकास का इतिहास प्रस्तुत करना भौर दृश्य तथा श्रव्य से उसका सम्बन्ध दिखाना; (२) उसका स्वरूप समभाते हुए उसके भ्रन्तगंत उठने वाले प्रदनो का भारतीय रृष्टि के श्रनुकूल समाघान करना, तथा (३) प्राचीन एव नवीन काव्य-समी क्षा के सिद्धान्तो की परीक्षा करके रस-सिद्धान्त की उचित सीमा-रेखाओ मे प्रतिष्ठा करना 1 किन्तु प्रवन्ध के इस प्रकाशित खण्ड मे सस्क्ृत तथा हिन्दी मे उपलब्ध सामग्री के झाघार पर मूलत प्रस्तुत विकास का इतिहास, रस-सामग्री का मनो- विज्ञान की भूमि पर परीक्षण तथा रसेतर भारतीय काव्य-समीक्षा-सिद्धान्तो के साथ रस-सिद्धान्त का सम्बन्ध श्रादि कलिपय विषय छोड दिये गए हैं। इस ग्रथ में केवल भारतीय दृष्टि से रस-सिद्धान्त के स्वरूप पर विचार किया गया है। परिणाम-स्वरूप पाद्चात्य मनोविश्लेपण झादि से सम्बन्धित श्रशों का झोध- अवन्ध मे विचार करने पर भी इस ग्रथ मे उन्हे पूरंतया वचा दिया गया है। प्रस्तुत रूप मे, पहले भ्रष्याय मे, विषय-प्रवेश के रूप मे, रस-सिद्धान्त के भारम्भकर्ता का परिचय, 'रस' शब्द के विविध स्थलीय प्रयोग भ्रादि पर विचार किया गया है। दूसरे भ्रष्याय मे हृश्य काव्य से भारम्भ करके श्रव्य मे रस की प्रतिष्ठा एव रस-सामग्री, विभावादि का शास्त्रीय विवेचन करते हुए कई महत्त्व- पूर्ण विषयो का समावेश किया गया है--यथा नवीन आलम्बनो की स्वीकृति, अनुभावो की कार्य-का रणरूपता, हाव तथा अ्रनुभाव मे पार्थक्य त्था सात्विकों की भाव-सत्ता भौर उनको प्रनुभाव मानने का भौचित्य ! सात्विक तथा सचारी मावो मे जिन विद्धानोने नवीन भावो का नियोजन किया है, उनके तरक की. उपयुक्तता- अनुपयुक्तता पर भी विचार किया गया है। हाव तथा अनुमाव के सम्बन्ध में मैं इस निष्कषं पर पहुँचा हूँ कि “इस प्रइन का एक-सात्र समाघान भानुदत का




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