धन्वन्तरि सीरीज का एक उत्कृष्ट प्रकाशन | Dhanvantri Sirij Ka Ek Utkrist Prakashan

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Book Image : धन्वन्तरि सीरीज का एक उत्कृष्ट प्रकाशन  - Dhanvantri Sirij Ka Ek Utkrist Prakashan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हल पुराण ग्रंथ भारतीय संस्कृति के अभिय अंग #४ । इनमें अनेक ज्ञोन की बातें जिनमें भक्ति, ज्ञान, बेराज तदा হুনি- हास सम्बन्धी उल्लेख मिलते है । ब्रह्म बेचते पुराण इसी, अठारह पुराणों की »% खला में एक है। इस पुराण में दो अध्पाय आयुर्वेद से सम्बन्धित हैं उनमें प्रथम अध्याय है सोलहवां तथा दूसरा अध्याय है इक्यायनवां। «ोन्तें ही अध्योय अपने अपने विषय को लेकर लिखे गये हे-1 बराह्मण रूपधारी भगयान विष्णु को मालावती ने पूछा -ब्रह्मत्‌ ! आपने जो कहा है कि रोग प्राणियों के प्राणों का अपहरण करता है। रोग के नाना प्रकार करे कारम, उन सवका वेद (आयुवेद) मे निरूपग-जिसका निवारण कठिन है वे अमंगलकारी रोग शरीर में न फले ऐसा आप उपाय बताइये ? तथा अन्य उपयोगी लोक हित- कारी बात बताइये । इन प्रश्नों का उत्तर देते हुए ब्राह्मण ने कहा ऋषक, साम, यजु. तथा अथर्व वेका अध्ययन करं प्रजापति ने आयुर्वेद (उपवे }) का संकलन क्था इस प्रकार पंचम वेद का निर्माण कर प्रजापति ने उस सुर्य को पडता | इस प्रकार आयुर्वेद के आवरार्थों की परम्परा बताई गई है। उत सभी आचार्यो ने अपनी सहिताये बनाई । उनका संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है -- আজান रचना (7) प्रजापति पंचम নিই (२) सूर्य - आपुर्वेन्‍-संहिता (अपने शिप्पों को पड़ाई) (३) धन्वन्तरि चिकित्सा तत्व विज्ञान ~ জী = 1 डाब्तारग्रकाशजीशी एम:ए.पीएच-डी:,डी-लिट এ বত অহা ল फति আঙ্গুল (४) काजिराज दिवरोदास चिकित्सादर्पग काशिराज दिव्य चिकित्सा कौमुदी (५) अश्विनी कुमार- विकिल्सा सारतंत (*) नक्रल - व्यक स्वस्य (७) सहरेव - व्याधि सिन्धु विमर्दन (८) सूयं पुव्रयम-- জানা (६) च्यवन ~ जीयदान (০) অনন্ধ -- वैद्य संदेह भज्जन (११) बुध -- सर्व सार (१२) जावाल +- নঙ্গজাহ (१३) जाजलि -- বাণ জান (१४) ঈল - निदान तंत्र (१५) करथ - स्वंधर तंत्र (75) अयस्त्य- दध निर्णय संख्या ? से २१९ तक तमी सूर्य के शिष्य थे । आपुर्वेद के अनुसार रोगा का परिज्ञान कर वेश्ना वो रोकता इतना हूं, वैद्य का वेद्यत्व है। वेद्य आयु का स्वत नहीं है ।* अंको आयुर्वेद का ज्ञाता, जकित्सा क्रियाओं ধা অখাথ ঘাঁংশালা। धर्मनिष्ठ तता दयालु होता चाहिप्रे । ज्तर दी उत्पत्ति के बारे में कहा है - दाहण ज्वर सम्रष्य रोगों का অলক है । उसे रोकना कठित होता है । वहु शित्र भक्त और थोगो है। सङ स्वभाव निष्डुर हैं। आद्षति विक्रराल है । उत्के तीन पैर, तीन घिर, ६ हाथ कौर नौ नेत्र हैं। बह भयकूर ज्वर काल अन्तक और घम्र के समान बिनागकारी है। মল ही उसका अस्नर है तथा छव्र परक उउूष्य देखता, 3 उपवेद आपुर्वेब, ज्योतिष३०७, आधुर्वेद- पत्र॒भोवद: थ ध्याघेत्तत्व परिज्ञन वेदतायाइच निग्रहः । एतद्र धस्य ईंचत्वं न উজ ~ प्रधु रायुषः ॥ था, प्र. ८ खण्ड, प्रथम प्रंकरण ४ इलंक् ५६ ॥1




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